२५२ वैष्णवों की वार्ता
(वैष्णव २२० ) श्री गुसाँईजी के सेवक शैव के बेटा की वार्ता
एक क्षत्रिय श्री महाप्रभुजी का सेवक था और श्री नवनीतप्रियजी के जलधारा की सेवा करता था। श्री नवनीतप्रियजी उसे अनुभव करते रहते थे। समय पाकर उसकी देह छूटी। उसने एक शैव ब्राह्मण के घर जन्म लिया। परन्तु वह न तो कुछ बोलै और नहीं रोया। चुपचाप पड़ा रहता था। उसे दूध पिलाते थे तो पि लिया करता था। इस प्रकार बारह महीने बिट गए। जब उसकी वर्षगांठ आई तो जाती भोज हुआ। वह जाती भोज में "श्रीवल्लभाचार्य जी " इन अक्षरों को बोलै। पुनः दो शब्द (नाम )बोलै -"श्रीवाललभ श्रीविठ्ठल। " तीसरे वर्ष में तीन शब्द, चौथे में चार नाम, पाँचवे में पाँच नाम लिए। उसके पिता ने उससे पूछा "तू नित्य प्रति क्यों नहीं बोलता है ?" उसने कहा -"मुझे श्रीगोकुल में ले चलो , में वहाँ बोलूंगा। " उसका पिता उसे श्री गोकुलमें ले गया। वहाँ जाकर वह बालक पिता से बोलै -"तुम श्रीगुसांईजी के सेवक हो जाओ , और मुझे भी उनका सेवक कराओ। "उसके पिता ने श्रीगुसांईजी की शरण ग्रहण की और उस बालक को भी उनका सेवक कराया। जब उसने श्रीनवनीतप्रियजी उस बालक को हाथ पकड़कर अपनी लीला में ले गए। उसका पिता बड़ा विद्वान् था। उसने कहा "यह बड़ा भाग्यशाली था। स्वयं तो प्रभु की लीला में लीन हुआ , उसने मुझे भी श्रीगुसांईजी के दर्शन करा दिए। में वैष्णव हो गया , यह श्री गुसाँईजी की कृपा हे वह बालक श्रीगुसांईजी का ऐसा कृपा पात्र था जिसको पूर्व जन्म की स्मृति रह गई और इस जन्म में स्वयं भगवद्लीला में लीन हुआ तथा परिवार को वैष्णव बनवा दिया।
| जय श्री कृष्ण |
| जय श्री कृष्ण |
जय श्री कृष्ण। श्री यमुना महारानी की जय।
ReplyDeleteश्री वल्लभधीश की जय।
श्री गुसांईं जी की जय।
श्री वल्लभ कुल परिवार की जय।
श्री गुरुदेव जी की जय।
Shree Gusaniji ki jai.
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