Wednesday, November 22, 2017

Shri Gusaniji Ke Sevak Vaishnav Ki Varta Jisane bhairav Ko Tuchch Mana


२५२ वैष्णवों की वार्ता   
(वैंष्णव १८३ श्री गुसाँईजी के सेवक वैष्णव की वार्ता जिसने भैरव को तुच्छ माना ;
वह वैष्णव आगरा से दो सामग्री भरकर गोपालपुर में ला रहा था। उसके रस्ते में भैरव का मंदिर आया, उसके गाड़ा खड़े रह गए गाड़ा वालो ने कहा -"भैरव पर दो नारियल चढ़ाओ, तभी गाड़ा बढ़ पाएगा। सभी लोग इस मंदिर पर नारियल चढ़ाते हे। उस वैष्णव ने भैरव के मंदिर में जाकर उससे कहा -"तू ने गाड़ा क्यों अटकाए रखा हे ?या तो गाड़ो को नहीं तो गाड़ो में बैलो के स्थान पर तुजको जोतकर ले जाऊंगा। भैरव हाथ जोड़कर खड़ा हो गया और बोलै -"मुज में तुम्हारे गडाओ को अटकने को कोई साम्यर्थ नहीं हे। मुझे तो तुम्हारे दर्शनों की अभिलाषा थी। श्रीनाथजी के प्रसाद की भी अभिलाषा हे। इसलिए गदा खड़े रखे है , अन्यथा इन गाडाओ को अटकने की तो तीनो लोको में किसी की साम्यर्थ नहीं हे। " तब उस वैष्णव ने श्रीनाथजी का प्रसाद गाड़ा में से निकलकर भैरव को दिया भैरव ने प्रसाद लिया ओर घुरि में बैठकर गदा को एक घंटा में गोपालपुरा पहुंचा दिया। गाड़ी के लोगो ने जाना की भैरव अतः गाड़ा के लोगोने ने गाड़ा रोकने की बात का निवेदन किया। श्रीगुसांईजी ने वैष्णव से कहा -" यदि तुमने भैरव को नारियल चढ़ाया गाड़ा ही छू गया हे अतः यह सामग्री हमारे काम की नहीं हे। तब उस वैष्णव ने श्रीगुसांईजी वास्तविकता से अवगत कराया। वैष्णव ने कहा -"महाराज, मेने भैरव को नारियल नहीं दिया हे, उसने श्रीनाथजी का प्रसाद चाहा था , सो उसे दिया गया हे। वह श्रीनाथजी के मंगला दर्शन करके जाएगा। यह सुनकर श्रीगुसांईजी बहुत प्रसन्न हुए। समस्त सामग्री को भंडार में रखने की आज्ञा प्रदान की। वह वैष्णव श्रीगुसांईजी का ऐसा कृपा पात्र था जिसने भैरव को तुच्छ माना।                                                                 
                                                                            | जय श्री कृष्ण |
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