२५२ वैष्णवों की वार्ता
(वैष्णव ६१ ) श्री गुसाँईजी के सेवक देवी के उपासी ब्राह्मण स्री पुरुष की वार्ता
एक ब्राह्मण अपनी ब्राह्मणी के साथ आगरा में रहकर देवी की मंत्र साधना करता था। उसकी साधना के प्रभाव से देवी प्रति मध्यरात्रि में उसे दर्शन देती थी और उससे बाते करती थी। इस प्रकार बहुत दिन दिन व्यतीत हो गए। एक दिन चाचा हरिवंशजी श्री गोकुल से आगरा गए। जयेष्ठ की ग्रीष्म के तप से बचते हुए, एक प्रहार रात्रि व्यतीत होने पर आगरा पहुंचे। बहुत जाने के कारन उस ब्राह्मण के चबूतरे पर सेरा किया। वहां शीतल वायु के कारन उन्हें शीघ्र ही निंद्रा आ गई। मध्यरात्रि होने पर देवी उस ब्रह्मण के घर पर आई , लेकिन बहार चबूतरे पर पांच वैष्णवों को सोता देखकर बड़ी प्रसन्न हुए ओर उनके ऊपर पंखा जलने लगी। देवी ने मन में विचार किया के ये वैष्णव भगवद भक्त हे , इन्हे लांघकर ब्राह्मण के घर में कैसे प्रवेश करू ?ब्राह्मण व् ब्राह्मणी अत्यधिक आतुर भाव से देवी के दर्शनों की प्रतीक्षा में थे। देर होने पर बड़े आर्तभाव से प्रार्थना पूर्वक आव्हान करने लगे लेकिन देवी फिर भी नहीं गई। वह रात्रि भर चाचाजी के पंखा जलती रही। जब रात्रि चार घडी शेष रह गई तो चाचाजी के उठे और संतदास के घर के लिए चल दिए। देवी भी ब्राह्मण के घर में अंदर चली गई और उस ब्राह्मण दम्पति को दर्शन दिए। ब्राह्मण ने हाथ जोड़कर मध्य रात्रि में न आने का कारन पूछा और साथ ही अपना अपराध भी जानना चाहा जिसके कारन रात्रि में दर्शन नहीं हुए। देवी ने कहा - "तुम्हारे घर के आगे वैष्णव सोते थे, में उनके ऊपर पंखा झलती रही। वैष्णव त्रिलोकी में सर्वश्रेष्ठ हे। साक्षात् भगवन भी वैष्णवों के वशीभूत हे। मेरे जैसे देवता उन वैष्णवों की टहल (चाकरी ) करना चाहते है लेकिन वैष्णवों की टहल (सेवा)उन्हें प्राप्त नहीं हे। " यह सुनकर ब्राह्मण बोलै - "ऐसे वैष्णवों के दर्शन तो हमें भी कराओ। " तब उस देवी ने कहा - " में तुम्हारे ऊपर प्रसन्न हूँ , तुम्हारा सच्चाभाव देखकर में तुमसे कहती हूँ। तुम दोनों (स्त्री - पुरुष ) उस संतदास के घर जाओ और उसके यहाँ आए हुए वैष्णवों के परामर्श के अनुसार श्री गुसाँईजी की शरण में चले जाओ। " इसके बाद वह ब्राह्मण अपनी स्त्री के साथ संतदास के घर गया और वहां चाचा हरिवंशजी से मिला उस ब्राह्मण ने उनको समस्त वृतांत सुना दिया तब तो चाचा जी ने उन दोनों कजो नाम सुनाया और पुष्टिमार्ग की रीती सिखाई। फिर दोनों स्त्री पुरुषो को चाचाजी अपने साथ श्रीगोकुल ले गए। वहां श्री गुसाँईजी दर्शन कराए। भली प्रकार से उनके बारे में श्रीगुसांईजी को बताया। श्री गुसाँईजी ने उन दोनों को नाम निवेदन कराया। वे दोनों स्त्री पुरुष श्री नवनीतप्रियजी के दर्शन करके बहुत प्रसन्न हुए।
श्रीगुसांईजी ने श्रीमदन मोहनजी की सेवा उनके माथे पधराई। वे सेवा करने लग गए। श्री गुसाँईजी ने उन दोनों को श्रीनाथजी के दर्शन भी अपने साथ ले जाकर करे। उन दोनों ने श्रीगुसांईजी से विनती करके चाचा हरिवंश जी ने उन्हें कृपा करके मार्ग की रीती भलिभाती समझाई। ये दोनों स्त्री पुरुष श्रीगुसांईजी के ऐसे कृपा पात्र हुए।
| जय श्री कृष्ण |
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