२५२ वैष्णवों की वार्ता
(वैष्णव १७६ ) श्री गुसाँईजी के सेवक रणछोड़दास वैष्णव की वार्ता
वे रणछोड़दास गुजरात में रहते थे। इनके पास धन बहुत था। ये भगवन और वैष्णवों की सेवा पूर्ण मनोयोग से करते थे। वैष्णवों के ऊपर अटूट श्रद्धा थी। एक ठग वैष्णव बनकर उनके घर में ठहर गया। उन्होंने उसका बहुत आदर किया। उस ठग ने रणछोड़दास के बेटे को एकांत में मर दिया। गहना उतर कर गठड़ी बनाकर चल दिया। मार्ग में उसे रणछोड़ दास मिले। रणछोड़दास ने कहा "वैष्णव बंधू , आपको प्रसाद लिए बिना नहीं जाने दूंगा, यह कहकर उसकी गठड़ी उठा ली। उसका हाथ पकड़कर कर उसे लौटा लाए। उस वैष्णव को स्नान कराया उनकी गठड़ी को अंदर रख दिया। रणछोड़दास की स्त्री ने कहा -"छोरा प्रातः कल से ही बहार है। अभी लौटा नहीं , उसको ढूंढ लाओ। " रणछोड़ का बेटा उसके घर के पास के बगीचे में खेलता रहता था। रणछोड़दास उसे देखने के लिए बगीचे में गया। वंहा उसे बालक नहीं मिला। एक एक मिटटी से बड़े ढेले को संदेहास्पद स्थिति में पड़ा देखा तो उसे वह देखने लगा। वहाँ उसे बालक को मारा हुआ पड़ा देखा। उसने उसके कण में अष्टाक्षर मंत्र कहा और जोर से बोलै -"उठ उठ !! घर में तो वैष्णव आए बैठे हे , उनको जाकर जय श्री कृष्ण कर। " यह सुनते ही बालक बैठा , फिर खड़ा होकर , घर के लिए चल दिया। घर में लेकर उसने लड़के को स्नान कराया। श्री ठाकुरजी के दर्शन कराये। तब वह ठग रणछोड़दास के चरणों में गिर गया। उसने कहा -"मैंने जो दुष्ट कर्म किया हे , वह आपसे छुपा नहीं है। मुझे क्षमा करो। मुझे आप वास्तव में वैष्णव कर लो। " तब रणछोड़दास ने उसे खर्चा देकर श्रीगोकुल भेजा। श्रीगुसांईजी के लिए पत्र लिखा दिया वह श्रीगुसांईजी का सेवक हो गया। रणछोड़दास श्रीगुसांईजी के ऐसे कृपा पात्र थे।
| जय श्री कृष्ण|
| जय श्री कृष्ण|
Jai Shree Krishna.
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