२५२ वैष्णवों की वार्ता
(वैष्णव २४२ ) श्री गुसांईजी के सेवक रानी दुर्गावती की वार्ता  
  
एक समय श्रीगुसांईंजी दक्षिण में पधारे थे।  वहां से कुछ तैलंग ब्राह्मणो (जो इनकी जाती के थे ) को इस देश में निवास करने के लिए लाये।  रस्ते में नर्मदा नदी के किनारे पर स्थित घड़ा ग्राम में मुकाम किया।  वहां एक व्यक्ति आँच लेने के लिए गया।  सब जगह वह " ईस्तु  ईस्तु " कहकर पूछने लगा।  यहाँ कोई ईस्तु को समजता नहीं था।  सब ठिकानो पर पूछकर लौट आया और बोलै -" यहाँ आंच नहीं मिलती है।  श्री ठाकुरजी की सेवा में विलम्ब होते देखकर श्री गुसाईंजी ने खीज कर कहा -"इस गांव में सब आंच बुज गयी है। "श्री गुसाँईजी की वाणी को सिद्ध करने के लिए श्रीठाकुरजी ने गांव की साडी अग्नि बुजा दी। उस गांव  दुर्गावती रानी का राज्य था।  गांव के लोगो ने रानी के यहाँ पुकार लगाई।  सारा गांव बिना आग के रसोई बनाये बिना भूख से "हा -हाकर " कर उठा।  गांव में चर्चा होने लगी , "यहां दक्षिण के ब्राह्मण आए है , उन्होंने गॉँव  की सारी अग्नियों को बूजा दिया है।  यह सुनकर रानी दुर्गावती स्वयं श्री गुसाँईजी के डेरा पर गयी।  वहाँ पहुँच कर श्रीगुसांईजी से विनती की और एक माह पहले सूर्य ग्रहण पर एक सो आठ गाँव दान करने का संकल्प किया था , वे गाँव श्री गुसाँईजी को भेंट किये।  श्रीगुसांईजी ने रानी दुर्गावती से कहा था , वे गांव श्री गुसांईजी को भेंट किये।  श्रीगुसांईजी ने रानी दुर्गावती से कहा -"हम तो किसी का दान नहीं लेते है।  रानी दुर्गावती ने कहा -"महाराज , में तो दान कर चुकी , अब इन्हे वापस कैसे लिया जावे? अब आपकी जो इच्छा हो सो करो। " फिर श्रीगुसांईजी ने रानी दुर्गावती के हाथ से उन तैलंग ब्राह्मणो को गांव बंटवा दिए जो अब तक वे तैलंग ब्राह्मण उन गाँवो की जागीर का उपभोग करते है।  श्रीगुसांईजी की प्रबल साम्यर्थ देखकर रानी दुर्गावती उनकी सेवक हो गई।  रानी ने उनसे निवेदन किया -"महाराज , मुझे आपके दर्शन सदैव होते रहे। यह सुनकर श्रीगुसांईजी ने मुकाम किया था , वहां एक तालाब था , उसके ऊपर तात पर अपनी एक बैठक का निर्माण कराया।  वहां श्रीगुसांईजी ने श्रीमद भगवत महापुराण का सप्ताह परायण किया। " उस बैठक में रानी दुर्गावती को श्रीगुसांईजी के प्रतिदिन दर्शन होते थे।  रानी दुर्गावती , कुछ दिन बाद , श्रीगोकुल आई और वहां 
श्री गुसाँईजी के दर्शन किए।  जब तक रानी श्री गोकुल में रही , प्रति दिन दर्शन करती रही।  रानी दुर्गावती श्रीगुसांईजी की ऐसी कृपा पात्र थी की उसे श्रीगुसाईंजी के श्रीमद भगवत का पथ करते हुए प्रतिदिन दर्शन होते थे।
| जय श्री कृष्ण |
| जय श्री कृष्ण |
 

 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
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ReplyDeleteये कहानी हमारे साथ शेयर करने के लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद्.
ReplyDeleteJai ho Shreeji Baba ki.Jai ho Gusaiji ki.
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