२५२ वैष्णवों की वार्ता
(वैष्णव १०३ ) श्री गुसांईजी के सेवक एक स्त्रोता वक्ता की वार्ता
ये दोनों स्त्रोता व् वक्त अपने देश में से श्रीगोकुल गए। श्री नवनीतप्रियजी के दर्शन किए और श्री गुसांईजी के मुखारविंद से कथा सुनाने लगे। कथा सुनकर अहर्निश भगवत वार्ता करते रहते थे। भगवद रस में ऐसे लीन हो जाते थे की उन्हें पांच पांच , सात -सात दिन तक देह की सूधी नहीं रहती थी। एक दिन भगवत वार्ता करते हुए दोनों की देह छूट गई। जब अग्नि संस्कार हुआ तो वैष्णवों ने उस स्त्रोता वैष्णव के कण , के हद में छेद देंखे। वैष्णवों ने श्रीगुसांईंजी से प्रार्थना की -"महाराज , इस वैषणव को भगवद वार्ता सुनंने की ऐसी आतुरता थी की ईसके रोम रोम में श्रवण हो जाते। जब श्रवण की आतुरता होती है तो भगवद् वार्ता सुनाने की उतकंठा रोम रोम में हो जाती है। भगवद वार्ता सुनने की ऐसी ही आतुरता होनी चाहिए। यह बात सुनकर वैष्णव बहुत प्रसन्न हो गए। वे स्त्रोता - वक्ता ऐसे ही कृपा पात्र थे।
| जय श्री कृष्ण |
| जय श्री कृष्ण |
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