२५२ वैष्णवों की वार्ता
(वैष्णव २०३ ) श्री गुसाईजी के सेवक गुजरातवासी एक क्षत्रिय वैष्णव की वार्ता
ये गुजराती क्षत्रिय वैष्णव चाचा हरिवंश जी के साथ गुजरात जा रहे थे। ये क्षत्रिय वैष्णव जब भगवद वार्ता करते थे तो भगवद रास में निमग्न हो जाते थे। उनकी रहस्य वार्ता को स्वयं श्री गोवर्धननाथजी सुना करते थे। एक बार ये क्षत्रिय वैष्णव मार्ग में भटक कर चाचाजी से बिछुड़ गए। इनको गाँव में एक वैष्णव इन्हे अपने घर लिवा कर ले गया। वह वहां भगवद वार्ता करने बैठ गया। इस क्षत्रिय वैष्णव को ऐसा रसावेश हुआ की ऐसे देहानुसन्धान ही नहीं रहा। इधर चचाजी इस वैष्णव को ढूंढते ढूँढ़ते यहाँ आ पहुंचे तो ऐसे भगवद रस में निमग्न पाया। भगवद वार्ता करते करते सारी रत गुजर गई। श्रीगोवर्धननाथजी खड़े खड़े इनकी वार्ता सुनते रहे। श्रीगोवर्धननाथजी का भी जागरण हो गया लेकिन ऐसे कोई देहानुसंधान नहीं हुआ। चाचाजी भी उनके पास जाकर खड़े रहे।इसे कुछ भी ज्ञान नहीं हुआ। चाचाजी ने कहा -"तुम तो भगवद रस में मग्न हो रहे हो , श्री गोवर्धननाथजी है। आपके इस तरह भगवद रस में लीन होने से श्री ठाकुरजी को बहुत श्रम होता है। अतः संभलकर भगवद वार्ता किया करो। यह कहकर चाचाजी उनको ले गए। वह क्षत्रिय वैष्णव ऐसा कृपा पात्र था जिसकी वाणी को सुनने के लिए श्रीगोवर्धन नाथजी स्वयं पधारते थे। उसके भाग्य की सराहना कहाँ तक की जाए ?
Jai ho Shree Govardhan Nath ji ki.
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