२५२ वैष्णवों की वार्ता
(वैष्णव १४४ ) श्री गुसाईंजी के सेवक एक नाई वैष्णव की वार्ता
द्वारिका के मार्ग में एक गाँव में नाई रहता था। जब श्रीगुसांईजी द्वारिका पधारे तो रस्ते में उस गांव में ठहरे वह नाई श्रीगुसांईजी के नाख़ून उतारने आया। जब तक उसने श्रीगुसांईजी के नाख़ून उतरे तब तक तो उसे श्रीगुसांईजी मनुष्य रूप में दिखाई दिए। जब वह नाख़ून उतर चूका तो उसे साक्षात् पूर्ण पुरुषोत्तम के रूप में दर्शन हुए। उसने श्रीगुसांईजी से प्रार्थन की -"मुझे आप अपनी शरण में ले लो। " श्रीगुसांईजी ने उसे नाम निवेदन कराया। वह नाई परम भवदीय हुआ उसने अपने समस्त औजार कुए में डाल दिए और ऐसा विचार किया की अब अन्य कोई व्यवस्था करके निर्वाह करूँगा अतः वह व्यापर करने लग गया। श्रीठाकुरजी धीरे धीरे उस पर प्रसन्न हुए। वह नाई श्री गुसाँईजी का ऐसा कृपा पात्र था जिसको थोड़े ही दिनों में भागवद्लीला का अनुभव हो गया।
| जय श्री कृष्ण |
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