२५२ वैष्णवों की वार्ता
(वैष्णव २२ ) श्री गुसांईजी के सेवक रूप चंद नंदा की वार्ता
रूपचंद नंदा आगरा के निवासी थे। वे एक बार श्रीगोकुल में आए। उस समय श्रीगुसांईजी के पास राघवदास ब्राह्मण श्रीसुबोधिनिजि पढ़ रहे थे। पढ़ते समय ही राघवदास के मन में एक विचार आया की चाचा हरिवंश परदेश में जाते है और बहुत मात्रा में भेंट लेकर आते है। वे तो ईतने अधिक पढ़े लिखे भी नहीं है। यदि मेरा जैसा पण्डित उनके स्थान पर जावे तो उनसे कई गुनी अधिक भेंट ला सकता है। उनके मन की बात को श्रीगुसांईजी जान गए तथा रूपचंद नंदा भी इस भाव को पहचान गए। फिर तो रूपचंद नंदा ने राघवदास से पूछा -"तुम कितने पढ़े हुए हो?यदि तुम पढ़े हो तो मेरी समस्या का समाधान करो। "श्रीमद भगवत दशमस्कन्ध पूर्वाध्द में ४६ अध्ध्याय है और उत्तरार्द्धमें ४७ अध्याय है। पूर्वाध्द अर्थात भगवत का आधा भाग किस कारन से ऐसे मन जावे। राघवदास ने अपराध क्षमा कराया। सो रूपचंद नंदा श्रीगुसाईजी के मन की बात और वैष्णवों के मन की बात को तुरंत जान जाते थे।
| जय श्री कृष्ण |
| जय श्री कृष्ण |
0 comments:
Post a Comment