भगवान श्रीकृष्ण द्वारा पूतना वध
अपने मंत्रियों से मंत्रणा करने के बाद कंस ने पूतना नामक डाइन को, जो छोटेछोटे बच्चों को अत्यन्त नृशंसतापूर्वक मारने का इन्द्रजाल जानती थी, आदेश दिया कि वह शहरों, ग्रामों तथा चरागाहों में जाकर सारे बच्चों का वध कर दे। ऐसी डाइने अपना इन्द्रजाल वहीं फैला सकती हैं जहाँ कृष्ण के पवित्र नाम का कीर्तन या श्रवण न होता हो। कहा जाता है कि जहाँ कहीं कृष्ण के पवित्र नाम का कीर्तन होता है, चाहे वह उपेक्षा से ही क्यों न हो, वहाँ से सारे बुरे तत्त्व-डाइनें, भूत-प्रेत तथा संकट-तुरन्त भाग जाते हैं। और जहाँ कृष्ण के पवित्र नाम का कीर्तन गम्भीरता से होता हो, विशेष रूप से वृन्दावन में जहाँ परमेश्वर स्वयं उपस्थित थे, वहाँ तो यह सर्वथा सत्य है। अत: नन्द महाराज के सारे सन्देह निश्चित रूप से कृष्ण-प्रेम पर ही आधारित थे। वास्तव में पूतना में शक्ति होते हुए भी उसकी गतिविधियों से कोई भय न था। ऐसी डाइनें “खेचरी' कहलाती हैं जिसका अर्थ है वे जो आकाश में उड़ सकती हैं। इस तरह का इन्द्रजाल आज भी कुछ स्त्रियों द्वारा भारत के दूरस्थ उत्तर पश्चिमी भाग में किया जाता है। वे उखड़े वृक्ष की शाखाओं पर बैठकर एक स्थान से दूसरे तक आ-जा सकती हैं। पूतना को यह इन्द्रजाल ज्ञात था इसलिए भागवत में उसे ‘खेचरी' कहा गया है।
पूतना किसी प्रकार की अनुमति के बिना ही गोकुल में नन्द के आवास मह में घुस गई। सुन्दर वस्त्रों से आभूषित होकर वह परम सुन्दरी के रूप में माता यशोदा के घर में गई। अपने अपने उठे हुए नितम्बों, उन्नत उरोजों, कान की बालियों तथा केश में लगे फूलों से वह अतीव सुन्दर लग रही थी। अपनी क्षीण कटि से वह और भी सुन्दर बन गयी थी। उसकी आकर्षक चितवन तथा मन्द मुसकान से सारे गोकुल वासी मोहित हो गए थे भोली-भाली गोपियों ने सोचा कि वह हाथ में कमल धारण करके वन्दावन में आई साक्षात् लक्ष्मी देवी है। उन्हें लगा कि वह अपने पति कृष्ण को देखने के लिए स्वयं आई हैं। उसकी अपूर्व सुन्दरता के कारण उसे किसी ने रोका नहीं, अत: वह बिना रोकटोक के नन्द महाराज के घर में प्रविष्ट हो गई। अनेक बालकों का वध करने वाली पूतना ने कृष्ण को पालने में लेटा देखा और वो तुरंत समझ गई कि इस नन्हें बालक में अद्वितीय शक्ति है, जो राख से की भान्त छिपी है। उसने सोचा “यह बालक तो इतना शक्तिशाली है कि क्षण भर में सारे ब्रह्माण्ड को नष्ट कर सकता है।''
पूतना की समझ अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। भगवान् श्रीकृष्ण प्रत्येक प्राणी के हृदय में हैं। भगवद्गीता में कहा गया है कि वे मनुष्य को आवश्यक बुद्धि प्रदान वाले तथा विस्मृति उत्पन्न करने वाले हैं। पूतना को तुरन्त पता चल गया कि य बालक को वह नन्द के घर में देख रही है, वह साक्षात् श्रीभगवान् है किन्तु इसका अर्थ यह नहीं था कि वे कम शक्तिशाली थे। ईश्वर सदैव ईश्वर रहता है। कृष्ण बालक के रूप में उतना ही पूर्ण है जितना एक विकसित युवक।
कृष्णा ने बालस्वभाव दिखाया और अपनी आंखे बन्द करली। मानो के वह पूतना को नहीं देखना चाह रहे हो। कुछ का कहना है कि कृष्ण ने इसलिए अपनी आ ली, क्योंकि वे उस पतना का मुँह नहीं देखना चाहते थे, जिसने अनेक बालकों का वध कर दिया था और अब उन्हें भी मारने आई थी। अन्यों का कहना है उसे अन्दर से कुछ अद्वितीय बातें ज्ञात हो रही थीं और उसे विश्वास दिलाने लिए उन्होंने अपनी आँखें बन्द कर लीं जिससे वह भयभीत न हो। इतने पर। कुछ दूसरे लोग इस प्रकार व्याख्या करते हैं :-कृष्ण का अवतार असुरों का व करने और भक्तों की रक्षा करने के लिए हुआ, जैसाकि भगवद्गीता में कहा गया है- परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम्। इस प्रकार उन्होंने जिस प्रथम असर का वध करना था, वह एक स्त्री थी। वैदिक नियमों के अनुसार, स्त्री, ब्राह्मण गाय या बालक का वध करना वर्जित है। किन्तु कृष्ण को वाध्य होकर पूतना का वध करना पड़ा और चूंकि स्त्री-वध शास्त्रोचित नहीं है, इसीलिए श्रीकृष्ण के पास आँखें बन्द करने के अतिरिक्त अन्य कोई चारा न था। एक दूसरी व्याख्या यह है कि कृष्ण ने इसलिए आँखें बन्द कर लीं, क्योंकि वे पूतना को मात्र अपनी धाय के रूप में मान रहे थे। पूतना कृष्ण के पास स्तनपान कराने आई थी। कृष्ण इतने कृपालु हैं कि यह जानते हुए भी कि पूतना उन्हें मारने आई है उन्होंने उसे अपनी धाय या माता के रूप में देखा।
वैदिक मान्यता है कि माताएँ सात प्रकार की होती हैं-सगी माता, गुरु-पत्नी, रानी, ब्राह्मणी, गाय, धाय तथा पृथ्वी। चूंकि पूतना कृष्ण को अपनी गोद में लेकर स्तनपान कराने आई थी, अत: कृष्ण ने उसे अपनी माता के रूप में स्वीकार किया। यह एक अन्य कारण समझा जाता है कि कृष्ण ने अपनी आँखें बन्द कर लीं। अब उन्हें धाय या माता का वध करना था, इसीलिए उन्होंने अपनी आँखें बन्द कर लीं। किन्तु उन्होंने अपनी माता या धाय के वध करने तथा अपनी सगी माता । या धर्ममाता यशोदा के प्रति प्रेम करने में कोई अन्तर नहीं रखा। हमें वेदों से यह भी जानकारी मिलती है कि पूतना के साथ भी मातृवत् व्यवहार किया गया और यशोदा के साथ ही इस संसार से मुक्ति प्राप्त हुई। जब बालक कृष्ण ने आँखें बन्द कर लीं, तो पूतना ने उन्हें अपनी गोद में उठा लिया। उसे यह ज्ञात न था कि वह साक्षात् मृत्यु को पकड़े हुए है। यदि मनुष्य धोखे से रस्सी को सर्प मान बैठता है, तो उसकी मृत्यु हो जाती है। इसी प्रकार कृष्ण से भेंट होने के पूर्व पूतना अनेक बालकों का वध कर चुकी थी, और उसने कृष्ण को भी उन जैसा ही समझा ; किन्तु अब वह एक साँप को पकड़ने जा रही थी, जो उसे तुरन्त मार देगा।
जब पूतना बालक कृष्ण को गोद में ले रही थी, तो यशोदा तथा रोहिणी दोनों ही वहाँ उपस्थित थीं, किन्तु उन्होंने उसे मना नहीं किया, क्योंकि वह कृष्ण के प्रति मातृ-प्रेम प्रदर्शित कर रही थी। वे यह न समझ कि वह एक अलकृत म्यान के भीतर छिपी तलवार की भाँति है। पूतना ने अपने स्तन में घातक विष लगा रखा था और गोद लेते ही उसने कृष्ण के मुँह में अपना स्तन लगा दिये। उसे आशा थी कि ज्योंही वह उसके स्तनों का पान करेगा ही मर जाएगा। किन्तु कृष्ण ने क्रुद्ध होकर तुरन्त मुँह में चूचुक लगा लिया। ने विषयुक्त दूध के साथ उस असुरनी के प्राण भी चूस लिये। दूसरे शब्दों में, दूध पीने के साथ ही उन्होंने पूतना के प्राण भी चूस लिये। कृष्ण इतने दयालु हैं कि व पतना अपना पय-पान कराने आई तो उन्होंने उसकी मनोकामना पूरी की और यके इस कार्य को माता का-सा आचरण माना। किन्तु वह और अधिक दुष्ट कार्य न करे, इसलिए उन्होंने तुरन्त ही उसे मार डाला। क्यूंकि यह असुरनी कृष्ण द्वारा मारी गई. अत: उसे मोक्ष प्राप्त हुआ। जब कृष्ण ने उसकी छाती को अत्यन्त बलपूर्वक दबाया और उसके प्राण हर लिए तो वह भूमि पर गिर पड़ी और अपने हाथ-पैर फैलाकर चिल्लाने लगी, “मुझे छोड़ दे! मुझे छोड़ दे!'' वह जोर से चिल्ला रही थी।
और उसका सारा शरीर पसीने से तर था। | जब रोदन करती पूतना मर गई, तो चारों ओर पृथ्वी तथा आकाश में उच्च तथा निम्न लोकों में तथा सभी दिशाओं में भयानक कम्पन हुआ और लोगों ने सोचा कि कोई वज्रपात हुआ है। इस प्रकार पूतना के इन्द्र जाल का दुःस्वप्न दूर हुआ और उसने एक विराट असुरनी जैसा अपना वास्तविक स्वरूप धारण कर लिया। उसने अपना भयानक मुँह खोल दिया और अपने हाथ पैर फैला दिये। वह उसी प्रकार गिर पड़ी जिस प्रकार इन्द्र के वज्र-प्रहार से वृत्रासुर गिर पड़ा था। उसके सिर के लम्बे-लम्बे केश उसके पूरे शरीर पर बिखर गये। उसका गिरा हुआ शरीर बारह मील तक फैला था जिसके गिरने से सभी वृक्ष चूर-चूर हो गये थे। जिस किसी ने उसके विशाल शरीर को देखा वह आश्चर्यचकित था। उसके दाँत खुदी हुई सड़कें लग रहे थे और उसके नथुने पर्वत-कन्दराओं के समान प्रतीत हो रहे थे। उसके स्तन छोटी-छोटी पहाड़ियों जैसे लग रहे थे और उसके केश विशाल लालाभ झाड़ी के समान थे। उसकी आँख के गड्ढे अंधकूपों के तुल्य, दोनों जाँघे नदी के दोनों किनारों के सदृश, उसके दोनों हाथ दृढ़निर्मित सेतुओं के समान या उसका उदर सूखे सरोवर की तरह लग रहा था। इसे देखकर सारे ग्वाल तथा पिया आश्चर्य एवं भय से चकित थीं। उसके गिरने से जो घोर शोर हुआ उससे कमास्तष्क तथा कानों पर आघात लगा और उनके हृदय तेजी से धड़कने लगे।
जब समस्त वृन्दावनवासियों की नाकों में पूतना के जलने से उत्पन्न धुएँ की सुगन्धि गई, तो वे एक दूसरे से पूछने लगे, “यह सुगन्धि कहाँ से आ रही है? और बातचीत के दौरान ही उन्हें यह ज्ञात हुआ कि यह सुगंध पूतना के जलने से उठे धुएँ की है। कृष्ण उन्हें प्राणों से प्रिय थे और जैसे ही उन्होंने सुना कि कृष्ण द्वारा पूतना का वध हुआ है, तो सबों ने प्रेमवश उस बालक को आशीष दिया। पूतना के जल जाने के पश्चात् नन्द महाराज घर आये और तुरन्त ही बच्चे को गोद में उठाकर उसका सिर चूमा। इस प्रकार वे परम सन्तुष्ट हुए कि उनका नन्हा-सा बालक इस महान् विपदा से बच गया। श्रीशुकदेव गोस्वामी उन समस्त व्यक्तियों को आशीर्वाद देते हैं, जो कृष्ण द्वारा पूतना वध के इस वृत्तान्त को सुनते हैं, क्योंकि उन्हें निश्चय ही गोविन्द के वरदान की प्राप्ति होगी। |
इस प्रकार लीला पुरुषोत्तम भगवान् श्रीकृष्ण के अन्तर्गत ‘पूतना वध' नामक छठे अध्याय का भक्तिवेदान्त तात्पर्य पूर्ण हुआ।
Krishna Janmashtami for the year 2018 is celebrated on 2 September & 3rd September.
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