२५२ वैष्णवों की वार्ता
(वैष्णव ४७ ) श्री गुसांईजी की सेवक अजब कुँवर बाई की वार्ता
ये अजब कुँवर बाई मेवाड़ में रहती थी। ये मीरा बाई की देवरानी थी। इनके यहाँ एक बार श्रीगुसांईजी पधारे थे , अजब कुँवर बाई को साक्षात् पूर्ण पुरुषोत्तम रूप में दर्शन हुए। अजब कुंवर बाई , श्रीगुसांईजी की सेवक हो गई। इनका चित्त अष्ट प्रहर श्रीगुसांईजी में ही लगा रहता था। जब श्रीगुसांईजी पधारने लगे तो अजब कुंवर बाई को मूर्छा आ गई। उसकी ऐसी दशा देखकर श्रीगुसांईजी वहाँ पर चार दिन और विराजे। अजब कुंवर बाई को पादकजी पधराकर दी। अजब कुंवर बाई शुद्ध रूप से पुष्टि पद्धति से सेवा करने लगी। श्रीनाथजी अजब कुंवर बाई के संग नित्य चौपड़ खेलते थे। उसके मन में यही लालसा रहती थी की श्रीनाथजी सदैव यहाँ पर ही विराजै , तो अधिक अच्छा रहे। एक दिन श्रीनाथजी अजब कुंवर बाई से बहुत प्रसन्न हुए ओर कहा "तू कुछ मांग ले "अजब कुंवर बाई ने माँगा की आप सदा यहाँ पर विराजो। तब श्रीनाथजी ने कहा -"श्रीगुसांईजी और श्रीगुसांईजी के सात लालजी जब तक भूतल पर मेरी सेवा करते रहेंगे , तब तक में गोवर्धन पर्वत का त्याग नहीं करूँगा। इसके बाद यंहा पधारूँगा। तब तक की अवधि में नित्य आवागमन करता रहूँगा। ऐसे वचन सुनकर अजब कुंवर बाई मन में बहुत ोरास्त्र हुई। इसलिए श्रीनाथजी अजब कुंवर बाई के वचन सत्य करने के लिए अब तक मेवाड़ में विराज रहे है। इनकी वार्ता कहाँ तक करे।
| जय श्री कृष्ण |
| जय श्री कृष्ण |
Jay sri krishna
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