२५२ वैष्णवों की वार्ता
(वैष्णव ६८) श्री गुसाँईजी के सेवक एक वैष्णव की बेटी की वार्ता
वह वैष्णव की बेटी बचपन में ही श्रीगुसांईजी की सेवक हुई और श्री ठाकुरजी पधरा कर सेवा करने लगी। वह बचपन से ही भगवद धर्मो का पालन करती थी। श्रीमद भागवत में कहा है -"कौमार आचरेत प्राज्ञो धर्मान भगवतनीह " इसका आशय है -"भगवदधर्मो का आचरण बल अवस्था से ही करे। " वह वैषणव की बेटी श्रीकृष्ण की अनन्य भक्त थी। उसका विवाह रामपसको के यहाँ हुआ। अतः रामोपासक पति से वह बाई भाषण नहीं करती थी। क्योंकि उसका पति कहता था -"हमारे राम तो राजा है, वे राजलीला करते है। "वह बाई कहती -"हमारे कृष्ण तो बाल -लीला, दान लीला, रासलीला , चीरलीला मानलीला, वणलीला , जन्मलीला विहार लीला अदि अनेक लीलाओ को एक कलावच्छिन करते है। " उसका पति कहता -"हमारे राम राजा है अतः उन्हें इन लीलाओं की आवश्कयता ही नहीं है। " इस प्रकार दोनों में जगडा चलता था। श्रीठाकुरजी आकर प्रतिदिन उनका जगदा सुलझाते थे। वे कहते -"सवत्र में हूँ , तुम दोनों मेरे में अभेद जानो , मेरे में कोई बीएड नहीं है। " उस स्वरुप में उस बै को श्रीकृष्ण दिखाई देते थे ओर पति को श्रीराम के दर्शन होते थे। एएस प्रकार स्वरुप चर्चा में उनका सारा जीवन बिट गया , उनको सांसारिक व्यव्हार यद् ही नहीं आया। सो वह वैष्णव की बेटी श्रीगुसांईजी की ऐसी कृपा पात्र थी।
| जय श्री कृष्ण |
| जय श्री कृष्ण |
जय हो प्रभु। कृपा नाथ प्रभु श्री जी बाबा की जय।
ReplyDeleteJai Shree Krishna.
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