२५२ वैष्णवों की वार्ता
(वैष्णव ११३
) श्री गुसांईजी के सेवक एक धोबी की वार्ता
वह धोबी श्रीनाथजी के वस्त्र धोता था। श्री गुसांईजी ने धोबी से पूछा "तू बड़े यत्न से श्रीनाथजी के वस्त्र धोता है , तू वस्त्रों को क्या समजता है और किस भाव से धोता है ?" धोबी ने कहा -"महाराज, मै तो समजता हूँ , इन वस्त्रो ने श्रीनाथजी का अंग स्पर्श किया है , अतः ये श्रीनाथजी का साक्षात् स्वरुप है और इन वस्त्रो का स्पर्श किया है , में भी भगवत स्वरुप होऊंगा। " श्री गुसांईजी ने हंसकर -"अस्तु " कहा। उस धोबी की अचानक देह छूटी। वह तो भगवद स्वरुप हो गया। मारवाड़ में एक राजा के गाँव में राजा के यंहा यह धोबी श्रीठाकुरजी हुआ। इसकी सेवा पूजा प्रतिष्ठा बहुत हुए। राजा ने बड़े वैभव से सेवा की। उस गाँव में चाचा हरिवंशजी गए। एक बनिये के यहाँ ठहरे। उस बनिया ने गाँव के श्रीठाकुरजी की बड़ी प्रसंशा की। चाचाजी ने संग के वैष्णवों से कहा -"चलो , चलकर देंखे , श्रीठाकुरजी कैसे है ?" चाचाजी ने उन्हें देखते ही कहा -"येतो श्रीनाथजी का धोबी है। परन्तु यह दिव्य दृष्टी से देखने से ही कहा -"ये तो श्रीनाथजी का धोबी है। परन्तु यह दिव्या दृष्टि देखने से ही ज्ञान हो सकता है। " यह कहकर चाचाजी ने 'मुंड हिलाया'। राजा उस समय सेवा करता था अतः राजा ने अपने सेवक भेजकर चचाजी को बुलाया और पूछा की तुमने "माथा क्यों हिलाया ?"तब चाचाजी ने समस्त वृतान्त सुनाया। राजा ने कहा -"मुझे तुम्हारी बात का विश्वाश कैसे हो?"
चाचाजी ने राजा को भी 'दिव्य दृष्टि प्रदान की, 'तब कितने पशु यगण में मरे थे वे सब दिखाई दिए। दिव्य दृष्टी देने पर उस राजा को वे श्रीठाकुरजी श्रीनाथजी के धोबी के रूप में दिखाई दिए। राजा ने चाचाजी से विनती की -"मुझे शरण में लो। " तब चाचाजी ने श्री गुसाँईजी को राजा के गांव में पधारे कर राजा और उसको सरे परिवार को उनका सेवक कराया। वह धोबी श्रीनाथजी की सेवा करते करते तद्रूप हो गया।
जय श्री कृष्ण
जय श्री कृष्ण
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