२५२ वैष्णवों की वार्ता
( वैष्णव ११३ ) श्री गुसांईजी के सेवक रेडा उदम्बर ब्राह्मण की वार्ता
वह रेडा ब्राह्मण कपडवं में दशा में रहता थे। श्री गुसाँईजी पधारे तब रेडा नाम निवेदन कराया। श्रीठाकुरजी पधराकर रेडा सेवा करने लग गया। कुछ दिन बाद रेडा श्रीगोकुल गया और वहाँ जाकर श्री गुसांईजी खवासी करने लगा। एक ब्राह्मणी डोकरी के घर में रेडा श्री ठाकुरजी पधराये। वही प्रसाद करते रमणरेती में श्री ठाकुरजी को दर्शन दिए। श्रीठाकुरजी करके रेडा देहानुसन्धानभूल भुल गया। श्री ठाकुरजी प्रसादी माला रेडा को पहना गए। रेडा सारी रात वही पड़ा रहा। दूसरे दिन समाचार मिले की रेडा रमणरेती में पड़ा है। श्री गुसाँईजी रमण रेती में पधारे और रेडा को चरण स्पर्श कराये तो रेडा को देहानुसंधान हुआ। श्री गुसाँईजी ने आज्ञा की -" अभी लीला में प्रवेश करने में विलम्ब है। रेडा वापस श्री गोकुल में आ गए। एक दिन रेडा श्री गुसाँईजी को पंखा कर रहा था। श्री गुसाँईजी जगे और रेडा को आज्ञा की - "तुम अपने देश में जाकर विवाह करो। " रेडा ने कहा -"मेरे पास द्रव्य नहीं है। मुजको को अपनी कन्या देगा ?" श्री गुसाँईजी ने आज्ञा की - "श्री ठाकुरजी ने सब सिद्ध कर रखा है।" रेडा उसी समय आज्ञा लेकर। वह अपने देश में आया। कपडवन में एक संजाई गाँव में रेडा ने मुकाम किया। उस गांव में एक उदंबर ब्राह्मण रहता था। उसके पास धन बहुत था। उसके एक बारह वर्ष की बेटी थी। उस बेटी को सर्प ने काट। उस ब्राह्मण की बेटी के प्राण निकलने लगे उस ब्राह्मण ने गाँव के बहार भी समाचार भेजे की मेरी बेटी को किसी भी उपाय से कोई बचा दे। रेडा ने उस ब्राह्मण से कहा -"मेरे पास एक उपाय है। " उस ब्राह्मण ने कहा -"उपाय करो। " तब रेडा ने चरणामृत दिया और कहा ऐसे इसके मुख में दाल दो। यह बच जाएगी " मुख में कुछ भी नहीं जाता था। उसने उसके होठो पर चरणामृत चोपड़ा तो उस लड़की का विष उतर गया। उस लड़की की माता ने यह संकल्प किया था की यह लड़की बच जाएगी तो किसी निष्किंचन ब्राह्मण को देगी। लड़की के बच जाने पर उस ब्राह्मण ने रेडा से पूछा -"तुम किस जाती के हो?" उसने अपनी जाती का खुलासा लिएकिया। उस ब्राह्मण ने का विवाह रेडा के साथ कर दिया। रेडा विवाहित होकर श्रीभागवत सेवा करने लगा उसकी भगवत सेवा से सभी लोग राजी हो गए। कुछ दिन बाद रेडा के एक पुत्र हुआ। उसी देश में कुछ दिन बाद में श्रीगोकुलनाथजी पधारे तो रेडा ने अपनी जाती के तथा अपने यजमान नीमा बनिया को श्रीगोकुलनाथजी की परम्परा में सेवक होते है। जब रेडा का बीटा बड़ा हुआ , तब रेडा श्री ठाकुरजी पधराकर श्री गोकुल में जाकर रहा। श्रीगुसांईजी की सेवा करने लगा। उस रेडा को कभी रास लीला और कभी बल लीला के दर्शन होने लगे। श्री ठाकुरजी रमणरेती में रेडा को दर्शन देते थे। रेडा ऐसा कृपा पात्र था।
|| जय श्री कृष्ण ||
|| जय श्री कृष्ण ||
Jai Shree Krishna.
ReplyDelete