२५२ वैष्णवों की वार्ता
(वैष्णव ५० )
श्री गुसाँईजी के सेवक प्रेत हातित पतित दोनों भाईओ की वार्ता
श्री गुसाँईजी के सेवक प्रेत हातित पतित दोनों भाईओ की वार्ता
दोनों हतित और पतित महानदी के तीर के ऊपर रहते थे। कोई भी रस्ते में से निकलता था उसे मर डालते थे। एक बार चाचा हरिवंश जी गुजरात से गोकुल जा रहे थे। वे रास्ता भूलकर उधर से जा निकले। दोनों प्रेत पर्वत बनकर रस्ते में आकर पड गए। एक तो आगे के रस्ते में आकर पड़ गया ओर एक चाचा हरिवंश जी के पीछे के रस्ते पर पहाड़ बनकर पद गया। चाचाजी बिच में फस गए। वे तत्काल समाज गए, यह तो कोई प्रेत बाधा हे। चाचा हरिवंशजी ने चरणामृत मिलाया हुआ जल उनके ऊपर छिड़का तो उन्होंने चाचाजी केके प्रताप को समजा। वे हाथ जोड़कर विनती करने लगे ओर उनसे कहा - "हमारा उद्धार करो। " चाचा हरिवंशजी ने उनको अष्टाक्षर मंत्र सुनाया। नाम सुनते ही उनकी देह दिव्य हो गई ओर वे भगवल्लीला में प्रवेश हो गए इसके पश्च्यात चाचाजी गोकुल गए तथा वहाँ जाकर उन्होंने श्रीगुसांईजी से विनती की। श्री गुसाँईजी ने आज्ञा की - " सो वर्ष से पहले ये दोनों महाठग थे ओर वैष्णव का वेश बनाकर फिरते रहते थे। एक स्थान पर ये वैष्णव के घर में रुके थे , वहां पर नहीं था, उसकी स्री घर पर थी उस स्री को रात में मर कर उसका सारा मॉल ले गए। रस्ते में उनको अन्य चोर मिल गए , सो उन चोरो ने उन्हें मर दिया ओर सारा मॉल ले लिया। उन्होंने जैसा किया , उनको वैसा फल तो तत्काल मिल गया, लेकिन वैष्णव की पत्नी को वैष्णव के चद्रम वेश में रहकर मारा था , उस अपराध में ये प्रेत बन गए। यदि तुम इनका उद्धार नहीं करते तो कल्प भर इन्हे प्रेत की योनि में ही रहना पड़ता। वैष्णव के अपराध को क्षमा कराने की शक्ति भी वैष्णव में ही होती हे। उसे श्रीठाकुरजी भी क्षमा नहीं करते हे। अम्ब्रीश के चरित्र से यह बात स्पष्ट हे। अतः वैष्णव को अपराध से डरते रहना चाहिए। इस प्रकार चाचा हरिवंश जी को श्री गुसाईंजी ने आज्ञा की। यह सुनकर सभी वैष्णव बहुत प्रसन्न हुए। इस प्रकार से उन हतित व् पतित का क्घ्छ हरिवंशजी ने श्री गुसाँईजी की कृपा से उद्धार किया। वल्लभाख्यान में गोपालदासने गया हे - "हातित पतित नो जुओ तुम प्रकतई घाण -" सो वे श्री गुसाँईजी की कृपा से भगवल्लीला में प्रवेश हुए।
| जय श्री कृष्ण |
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