२५२ वैष्णवों की वार्ता
(वैष्णव - ११ ) श्री गुसाँईजी के सेवक भैया रूप मुरारी क्षत्रिय की वार्ता
एक दिन श्री गुसाँईजी गोविन्द कुंड के ऊपर संध्या - वंदन कर रहे थे। भैया रूप मुरारी वहाँ शिकार करते हुए आ गए। उनके एक हाथ में बज था। उन्होंने श्री गुसाँईजी को दूर से ही देखा। उसे साक्षात पूर्ण पुरषोत्तम के दर्शन हुए। उसने शिकार को छोड़ दिया। श्री गुसाँईजी के दर्शन करके बोलै - "महाराज, मै तो निंध कर्म करता हूँ। " श्री गुसाँईजी ने कहा -"जब जग जाए तभी सवार (प्रातः काल ) मन लेना चाहिए। "यह सुनकर भैया रूपमुरारी श्रीगुसांईजी के सन्मुख हाथ जोड़कर खड़े हो गए। श्रीगुसांईजी की आज्ञा के अनुसार उसने स्नान किया, तब श्रीगुसांईजी ने उसे नाम सुनाया।उसे श्रीनाथजी के सन्निधान में समर्पण कराया। भोजन करके महाप्रसाद की पपत्तल धरई। भैया रूप मुरारी ने महाप्रसाद लिया। फिर एक दिन भैया रूप मुरारी ने श्री गुसाँईजी सेपूछा - "महाराज मेरे द्वारा किये गए , निंद्य कर्म मुझे स्मरण एते है अतः में आपके चरण स्पर्श करने मै बहुत संकोच करता हूँ। " एएस पर श्री गुसाँईजी ने कहा - "अब तुम वैष्णव हो गए हो , तुम्हारा नविन जन्म हो गया है। तुम नित्य स्नान करके अपरस मैं रहकर चरण - स्पर्श करने लगे। ये भैया रूपमुरारी ऐसे कृपा पात्र थे की जिनका मन दर्शन मात्र से ही प्रभु के चरणारविन्द में लग गया था। |
| जय श्री कृष्ण ||
Jai Shree Krishna.
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