२५२ वैष्णवों की वार्ता
(वैष्णव ८३ ) श्री गुसाँईजी के सेवक डोकरी धानी पुनि वाली की वार्ता
उस डोकरी ने श्री गुसाँईजी से विनती करके अपने माथे श्रीठाकुरजी पधारये। वह नियम से सेवा करने लगी। वह सूत कात कर निर्वाह करती थी जब वह कातने बैठती तभी श्रीठाकुरजी उस डोकरी के पास पूनी में विराज जाते। बल लीला करते और पूनी की गाड़ी -तकिया करके बैठ जाते। एक पुनि उस डोकरी के हाथ में देते और भूख लगती तो धानी माँगते थे। एक दिन उस डोकरी की वयवस्था श्री गुसाँईजी के तीसरे लालजी ने देखि। उन्होंने उस डोकरी से कहा -"ये लालजी तुम हमें दे दो। "उस डोकरी ने लालजी उनके यहाँ पधरा दिए। डोकरी श्रीठाकुरजी के बिना बहुत दुःखी हुई। श्रीठाकुरजी उस डोकरी के आर्तभाव को नहीं सह सके। श्रीठाकुरजी ने बालकृष्ण से कहा "मुझे तुम डोकरी के यहाँ पहुँचाओ। ढाणी -पूनी के बिना मेरा मन तुम्हारे यहाँ नहीं लगता है। " श्रीबालकृष्णजी ने रत में ही आकर डोकरी के घर श्रीठाकुरजी को पधरा दिया। डोकरी से कहा " जैसे तुम नित्य करती थी, वैसे ही करो। " श्रीठाकुरजी तेरे पर प्रसन्न हे। वह डोकरी ऐसी कृपा पात्र थी जिसके बिना श्रीठाकुरजी नहीं रह सके।
| जय श्री कृष्ण |
| जय श्री कृष्ण |
Jai ho Shree Thakurji ki.
ReplyDelete