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वैष्णवो की वार्ता
(वैष्णव
११९)श्रीगुसांईजी
के सेवक माधवेन्द्र पुरी की
वार्ता
माधवेन्द्र
पुरी मध्वसम्प्रदाय के संन्यासी
थे और अड़ेल में रहते थे |
श्रीगुसांईजी
उनके पास पढ़ने जाते थे |
प्रतिदिन
श्रीगुसांईजी उनके यहाँ पुस्तक
रख आते थे और घर आकर भगवत सेवा
करते थे |
एक
दिन माधवेन्द्रपुरी ने
श्रीगुसांईजी से कहा -
"तुम
पुस्तक रख जाते हों,घर
में जाकर कुछ गोखते (पुनरावृति)
नहीं
करते हो|"
श्रीगुसांईजी
ने श्री माधवेन्द्रपुरी से
कहा- "मुझे
सब कुछ याद है,आप
पूछें तो मैं बताऊँ|"
माधवेन्द्रपुरी
ने कुछ स्थलों से प्रश्न किये
| श्रीगुसांईजी
ने जो उत्तर दिये वे इस प्रकार
दिये कि माधवेन्द्रपुरी को
जितना स्थल याद था उससे भी दश
गुणा अधिक बताया |
तब
माधवेन्द्रपुरी को बहुत विचार
हुआ- "इनके
ज्ञान की स्फुरणा का क्या कारण
है? ये
इतना सारा कहाँ से सीख गए?
इस
उहापोह में ही रात में
माधवेन्द्रपुरी को निद्रा
आ गई |
श्रीठाकोरजी
ने माधवेन्द्र पुरी से स्वप्न
में कहा -
"मैं
श्रीगिरिराजजी में प्रकट हुआ
हूँ | मेरी
सेवा मेरे बिना कोई भी नहीं
जानता है,मैं
मेरी सेवा पद्धति सिखाने के
लिए श्रीविटठलनाथजी के रूप
में प्रकट हुआ हूँ |
यदि
तू मुझको प्राप्त क्ररना चाहता
है तो इनकी शरण में जा |
माधवेन्द्रपुरीकी
नींद उड़ गई |
सारी
रात विचार करते रहे दिन निकलने
की प्रतीक्षा सताने लगी |
श्रीगुसांईजी
पढ़ने आवेंगे यह आतुरता सताने
लगी |
प्रात:काल
होने पर श्रीगुसांईजी पढ़ने
आए| माधवेन्द्र
पुरी ने कहा-
" आप
तो पूर्ण पुरुषोत्तम हैं,हम
जैसे जीवों को मोहित करने के
लिए पढ़ते हो |
मुझे
तुम गुरुदक्षिणा प्रदान करो
| आपके
माथे पर श्रीनाथजी विराज रहे
हैं| मुझको
भी कुछ दिन सेवा करने की आज्ञा
दो| आप
मुझको सेवक कर लो |
माधवेन्द्र
पुरी से श्रीगुसांईजी ने कहा
- "हमने
तुम्हारे पास विधा पढी है,
अत:
हम
तुमको सेवक नहीं कर सकते?
हम
तुम्हें उपदेश कैसे करें?"
माधवेन्द्रपुरी
सुनकर बहुत उदास हुए |
उत्थापन
के समय श्रीनवनीतप्रियजी ने
आज्ञा की -
"श्रीगुसांईजी
आप माधवेन्द्र पुरी को सेवक
करो |"
तब
श्रीगुसांईजी ने माधवेन्द्र
पुरी को नाम निवेदन कराया और
व्रज में संग लेकर पधारे |
उन्हें
श्रीनाथजी की सेवा में रखा|
बंगालियों
को माधवेन्द्र पुरी के साथ
रखा|
माधवेन्द्रपुरी
श्रीनाथजी की सेवा करने लगे
| माधवेन्द्र
पुरी संन्यासी थे अत:
जो
भी भेंट आती थी,उसे
बंगालियों को दे देते थे |
वे
अपने पास कुछ भी नहीं रखते थे|
श्रीगुसांईजी
भी उनसे इस विषय में कुछ भी
नहीं कहते थे |
कुछ
दिन बाद श्रीनाथजी की इरछा
वैभव बढ़ाने की हुई|
अत:
श्रीनाथजी
ने माधवेन्द्रपुरी को मलय
गिरि से चन्दन लाने की आज्ञा
दी | माधवेन्द्र
पुरी मलयगिरि लाने चले गए,पीछे
से कृष्णदास अधिकारी ने
बंगालियों को सेवा से निकाल
दिया | यह
बात श्रीनाथजी के प्राकट्य
में लिखी है अत:
यहाँ
उसे लिखा नहीं है|
माधवेन्द्र
पुरी मलयगिरि चन्दन लेने को
गए | वहाँ
उन्होंने हिम गोपाल के दर्शन
किए| हिम
गोपाल ने आज्ञा की-"
तूम
हमको यहाँ चन्दन लगाया करो,वर्ज
में मत जाओ|"
माधवेन्द्रपुरी
ने वहाँ चन्दन समर्पित किया
और भगवल्लीला को प्राप्त हुए|
माधवेन्द्रपुरी
श्रीगुसांईजी के ऐसे कृपा
पात्र थे |
|
जय
श्री कृष्णा |
Sri pad madhvendra puri appeared in 1420 whereas sri gusain ji appeared in 1516 evan madhvendra puri disappeared before the appearance of Sri gusain ji..How this past time can happen ??? Please explain
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