२५२ वैष्णवो की वार्ता
(वैष्णव ११६)श्रीगुसांईजी के सेवक
माघवदास भटट नागर कायस्थ की वार्ता
माधवदास भटट जब
श्रीगुसांईजी के सेवक हुए,तभी से उनका मन शान्त
हुआ और भगवत् सेवा में लीन रहने लगे ।
माधवदास के पिता अत्यधिक संसारासातक और विषयी थे । वे माधवदास से बहुत अप्रसन्न थे । उनके पास द्रव्य
की कोई कमी नहीं थी लेकिन माधवदास को कुछ भी नहीं देते थे । वे सोचते थे कि माधवदास को यदि द्रव्य दे दिया जाएगा तो यह सभी द्रव्य को
भगवत सेवा में लगा देगा । वे माधवदास की
बहुत निन्दा करते थे । जब वे वृद्ध बहुत
हो गए तो माधवदास ने उनसे कहा - " अब तो आपका समय तीर्थ यात्रा करने का है
।" माधवदास के वचनों में प्रीति रखने हुए उनके पिता तीर्थ करने को चल दिए ।
जब मथुरा पहुँचे तो उनको चौबे मिले |चौबे लोगों ने कहा - " गुरुमुख हो जा ।" तब उन्होंने
विचार किया - " ये चौबे तो मेरे गुरु हुए । पर मेरा मन संसार के भोगों से अभी
विरत नहीं हुआ है । मैं तो माधवदास के गुरु की शरण में जाऊँगा,तभी मेरा मन निवृत होगा । यह विचार करके वे
श्रीगोकुल चले गए । वहाँ जाकर श्रीगुसांईजी से विनती की - " मुझे अंगीकार करो
।" तब श्रीगुसांईजी ने नाम निवेदन
कराया । तब माधवदास के पिता ने श्रीगुसांईजी के साथ जाकर श्रीगोवर्धननाथजी के
दर्शन किए और मन में ऐसी आई कि जब तक मेरा शरीर रहेगा,मैं श्रीगुसांईजी के चरणारविन्दों को नहीं
छोडूंगा । उन्होंने माधवदास को पास बुला लिया और मन में कहने लगे - " मेरा
जन्मधन्य है जो मेरे यहाँ माधवदास जैसे पुत्र ने जन्म लिया,जिसके प्रभाव से मुझे श्रीगुसांईजी के दर्शन
प्राप्त हो सके सभी तीर्थ श्रीगुसांईजी के
चरणों में विधमान हैं अत: अब कहीं भी तीर्थ करने नहीं जाऊँगा ।" उन्होंने
सारा द्रव्य माधवदास को सौंप दिया । सो माधवदास ऐसे कृपापात्र भक्त थे जिनके
प्रभाव से उनके पिता जो विषयासतक थे, उनका मन विषयों से निकलक्र प्रभु की ओर सन्मुख हो सका |
| जय श्री कृष्णा |
0 comments:
Post a Comment