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वैष्णवो की वार्ता
(वैष्णव १२३)श्रीगुसांईजी
के सेवक एक श्रेष्ठिपुत्र और
उसकी दासी की वार्ता
वह
सेठ श्रीगुसांईजी का सेवक था
| उसके
घर में एक दासी थी जब सेठ की
देह छूटी तो वह अपने बेटा और
श्रीठाकोरजी की सेवा का भार
उस दासी पर सौंप गया |
वस
सेठ का बेटा उस दासी को -
'माजी'
कहता
था| एक
बार उस गाँव में से कुछ वैष्णव
श्रीनाथजी द्वार जाने लगे तो
सेठ के बेटा ने कहा-
" माजी,मैं
यात्रा पर जा रहा हूं|"
उस
दासी ने कहा-
"अभी
तुम श्रीनाथजी के दर्शन के
लिए मत जाओ|
अभी
श्रीनाथजीकी इच्छा नहीं है|"
वह
सेठ का बेटा नहीं माना वह संग
साथ में चल दिया|
रास्ते
में एक गाँव आया|
उस
गाँव में सरकारी मनुष्यों के
साथ उस सेठ के बेटे का जगदा हो
गया|
वहाँ
के राजा ने संग साथियों के
सहित सेठ के बेटा को कैद में
डाल दिया|
दो
दिन बाद उस राजा ने अन्य सब को
तो छोड़ दिया केवल सेठ के बेटा
को कैद में ही रखा |
अत:
संग
के अन्य सब तो श्रीनाथजी के
दर्शन करके पुन:
गाँव
में पहुँच गए|
सेठ
का बेटा कैद में रहा|
फिर
गाँव के लोगों ने राजा से कह
क्र उसे मुक्त कराया
जब
वह गाँव में आया तो उसने उस
दासी से कहा-
"माजी,मुझे
तो श्रीनाथजी के दर्शन नहीं
हुए|
मैंने
तो कैद में दू:ख
और पाया
अब
तो जब तुम्हारी कृपा होगी,
तभी
मुझे श्रीनाथजी दर्शन देंगे|"
उस
दासी को दया आ गयी अत:
उसने
कहा-"तुम
तो वैष्णवों की टहल करो |
तुम्हें
श्रीनाथजी दर्शन देंगे|
सेठ
का बेटा वैष्णवों की टहल करने
लग गया|
जो
भी वैष्णव वहाँ अत,उन्हें
स्नान कराता,
महाप्रसाद
लिवाता,पंखा
जलता,जलपान
कराता और पैर दाबने की सेवा
करता था|
वह
पूरे दिन अपने शरीर से सेवा
करता था|
एक
दिन तादृशी सन्त भगवदीय अदभुत
दास जी आए|
उनकी
भी उसने बहुत टहल की|उस
सेठ के बेटा ने अदभुतदासजी
को कहा-
"मैं
तो श्रीनाथजी के दर्शन करना
चाहता हूं |
वर्जयात्रा
भी करना चाहता हूं |
सेठ
के बेटा को अदभुतदासजी ने कहा-
" तुम्हारा
मनोरथ पूर्ण होगा|
श्रीगुसांईजी
की कान से श्रीनाथजी तुम्हें
दर्शन देंगे|"
सेठ
का बेटा कुछ वैष्णवों के साथ
श्रीनाथजी के दर्शनों के लिए
गया|
जाकर
उसने दर्शन किए|फिर
उस दासी ने श्रीगुसांईजी से
विनती की-
"महाराज,श्रीनाथजी
के दर्शन इसके भाग्य में नहीं
थे, इसे
तो वैष्णवों की कृपा से दर्शन
मिले है श्रीगुसांईजी ने आज्ञा
की-
श्रीनाथजी
वैष्णवों के वश में हैं|
वे
चाहें तो ब्रह्माण्ड को बदल
डालें|
जब
वैष्णव प्रसन्न होते हैं तो
खोटी-खरी
कर्म रेखा भी मिट जाती है|"
श्रीगुसांईजी
के वचन सुनकर दासी बहुत प्रसन्न
हुई|
सेठ
का बेटा यात्रा करके अपने घर
आया और सेवा करने लगा|
वह
दासी और सेठ का बेटा ऐसे कृपापात्र
थे|
|
जय
श्री कृष्णा |
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