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वैष्णवो की वार्ता
(वैष्णव १२२ )श्रीगुसांईजी
के सेवक रूपा पोरिया की वार्ता
(प्रसंग-१)
रूपा
पौरिया श्रीनाथजी की सिंह
पौरी पर बैठता था|
रात
को धौल गाता था|
एक
दिन गोविन्द स्वामी ने कहा-
"तुम
धौल मत गाओ,तुम्हारा
राग अच्छा नहीं है|
उसने
धौल नहीं गाया|
श्रीनाथजी
को साड़ी रात नींद नहीं आई,प्रात:काल
जब श्रीगुसांईजी ने श्रीनाथजी
को जगाया तो श्रीनाथजी के
नेत्रों में लालिमा देखकर
श्रीगुसांईजी ने पूछा-
"आज
आपका जागरण क्यों रहा है?"
तब
श्रीनाथजी ने कहा-"
रूपा
नित्य प्रति धौल गाता है,तब
हमको नींद आती है,आज
उसने धौल नहीं गाई अत:
हमें
नींद भी नहीं आई|"
तब
श्रीगुसांईजी ने रूपा को
बुलाकर पूछा-
" तूने
आज धौल क्यों नहीं गाई?"
रूपा
पौरिया ने हाथ जोड़कर कहा-
"गोविन्द
स्वामी ने मनाहीं क्र दी थी|"
गोविन्द
स्वामी से श्रीगुसांईजी ने
पूछा-"तुमने
रूपा पौरिया को धौल गाने से
क्यों रोका?
श्रीनाथजी
को रात में नींद ही नहीं आई|"
गोविन्द
स्वामी ने कहा -"मुझे
यह ज्ञात नहीं था कि श्रीनाथजी
के यहाँ खांडऔर गुड़ एक भाव
है|"
इस
पर श्रीगुसांईजी ने कहा-
"कर्म
से कृपा न्यारी है|"
यह
सुनकर गोविन्द स्वामी चुप हो
गए | रूपा
पौरिया नित्य प्रति धौल गाने
ग गया और उसके गाने को सुनकर
श्रीनाथजी को नींद आती थी|
(प्रसंग-२)
एक
दिन,रात
में श्रीनाथजी को भूख लगी,तो
रूपा पौरिया को लात मारकर
जगाया और आज्ञा की-"मुझे
भूख लगी है|"
रूपा
पौरिया ने श्रीगुसांईजी को
जगाकर विनती की|
तब
श्रीगुसांईजी रात में ही स्नान
करके सामग्री लेकर भीतर पधारे
और श्रीनाथजी को आरोगाए|
फिर
तो श्रीगुसांईजी रूपा पौरिया
पर बहुत प्रसन्न हुए|ऐसी
अनेक प्रकार की लीला श्रीनाथजी
रूपा पौरिया से करते थे|
कितने
ही लोगों ने लिखा है-
रूपा
पौरिया श्वान हुए|
लेकिन
यह बात झूठी है|
कारण
कि रूपा पौरिया जान करके (जान
बूजकर)
अनप्रसादी
खाता ही नहीं था और अनजान का
इनता दण्ड होता नहीं है|
अत:
यह
बात बिल्कुल झूठी है|
वे
रूपा पौरिया श्रीगुसांईजी
के ऐसे कृपा पात्र थे|
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जय
श्री कृष्णा |
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