२५२
वैष्णवो की वार्ता
(वैष्णव
११५)श्रीगुसांईजी
के सेवक कटहरिया की वार्ता
एक
समय जब श्रीगुसांईजी गुजरात
से ब्रज को पधार रहे थे,उस
समय मार्ग में तीन सौ सवार
लेकर कटहरिया लोगों को लूटते
फिरते थे । उन्होंने श्रीगुसांईजी
की सवारी देखकर आकर घेरा दाल
दिया । उनके साथ पन्द्रह-बीस
गाड़ियाँ थी,सबको
रोक लिया । श्रीगुसांईजी के
सेवक एक-एक
गाड़ी पर एक-एक
खड़े हो गए । उन चोरो को वे सेवक
शेर जैसे दिखाई दिए । कटहरिया
स्वयं श्रीगुसांईजी के रथ के
पास गया तो उसे वे पूर्ण
पुरुषोत्तम रूप में दिखाई
दिए । कटहरिया ने वहाँ खड़े रह
क्र विनती की और कहा-
" मैं
अपराधी हूँ ,
आप
कृपा करके मुझे पावन क्र दीजिए
। आपके बिना मेरा कोई भी उद्धार
नहीं क्र सकता है । यह विनम्र
निवेदन सुन क्र श्रीगुसांईजी
ने कटहरिया को नाम सुनाया ।
कटहरिया के आग्रह से श्रीगुसांईजी
ने वहाँ डेरा किया । कटहरिया
ने वहाँ से सभी चोरों को भगा
दिया । फिर कटरिया स्वयं
श्रीगुसांईजी के साथ श्रीगोकुल
आ गए । यहाँ आकर उन्होंने
श्रीगोकुल में निवास किया ।
वे प्रतिदिन नया पद बनाकर गाने
लगे । एक दिन जन्माष्टमी पर
श्रीनाथजी के सम्मुख गए और
पद गायन किया ।
पद-
"आज
कहा मंगल महरानें ।
पंच
शब्द ध्वनि भेरि बधाई पर
वेरकवाने ॥ "
यह
पद सुनकर श्रीगुसांईजी बहुत
प्रसन्न हुए । उन्होंने विचार
किया श्रीनाथजी ने कटहरिया
के उपर कैसी कृपा की है । कहाँ
तो यह चोरी करता था और मनुष्यों
को मारता था और अब कैसा भगवल्लीला
में अवगाहन क्र रहा है ।
श्रीगुसांईजी के मन में बहुत
प्रसन्नता हुई । गोपालदासजी
ने गाया है-
"
ए
वाते गुणनिधिनाथ गातां ब्रह्म
इत्यादिक अधटरे ।
लीला
ते लहेरि सिंधु झीले ॥"
रास
रसिक ने ये बात कटहरिया में
प्रत्यक्ष में देखी । वे कटरिया
श्रीगुसांईजी के ऐसे कृपा
पात्र थे|
|
जय
श्री कृष्णा |
Thanks for posting valuable maidin information.
ReplyDeleteVery Nice Information
ReplyDelete