Monday, March 21, 2016

Shri Gusaiji Ke Sevak Ek Brahmni Jo Adel Me Rahti Ki Varta

२५२ वैष्णवो की वार्ता
(वैष्णव १२०) श्रीगुसांईजी की सेवक एक ब्राह्मणी जो अडेल में रहती  की वार्ता



    उस ब्राह्मणी को नाम निवेदन कराकर श्रीगुसांईजी ने आज्ञा दी कि श्रीनवनीतप्रियजी की परिचर्या करो | वह ब्राह्मणी परिचारकी करने लगी | एक दिन दाल की तपेली माँजने में दाग शेष रह गया किसी को भी कुछ  पता नहीं हुआ | जब श्रीनवनीतप्रियजी  को भोग धरने के लिए श्रीगुसांईजी पधारे तो श्रीनवनीतप्रियजी ने श्रीगुसांईजी से कहा- '' आज तो राजभोग की सामग्री  'छू'  (छुवाय) गई है | तपेली में दाग रह गया था | श्रीगुसांईजी ने दूसरी सामग्री कराई और श्रीनवनीतप्रियजी को समर्पित की | श्रीगुसांईजी ने उस ब्राह्मणी को यमुनापार भेज दिया,जहाँ वह जोपडी बनाकर रहने लगी |यमुनाजी के घाट पर जो गाय-भैंस आवें, उनका गोबर थाप लेती और उपले बनाकर बेच देती |यमुना के घाट पर पार उतरने  के लिए जो लोग आवें, यदि वे वहां रसोई करे तो उनको उपले बेच देती | इस प्रकार वह निर्वाह करने लगी | उस घाट पर गाय-भैंस बहुत आती थी,अत: गोबर भी बहुत होता था सो उपलों का ढेर बहुत बड़ा हो गया | एक दिन एक ब्रजवासी नाव लेकर उपले खरीदने गया | उस ब्राह्मणी से पूछा तो ब्राह्मणी कहा - '' यदि मन्दिर के लिए उपला चाहिए तो यों ही ले जाओ | ये सब उपले भरवाकर नाव ले गया | श्रीगुसांईजी ने पूछा - '' ये इतने सुन्दर उपले कहाँ से लाए हो |" उस ब्रजवासी ने उस ब्राह्मणी की दण्डवत कही और सब समाचार कहे श्रीगुसांईजी सुनकर बहुत प्रसन्न हुए | उन्होंने आज्ञा की - " ब्राह्मणी को बुलाकर लाओ |" फिर वह ब्रजवासी दूसरी नाव लेकर गया और उपले भरकर उस ब्राह्मणी को संग ले आया | उस ब्राह्मणी ने श्रीगुसांईजी के बहुत दिनों में दर्शन किये थे | अपना दोष यादकर के उसके नेत्रों से जल बहने लगा | श्रीगुसांईजी ने उसे धीरज बंधाया और  आज्ञा की " रोओ मत, अब श्रीनवनीतप्रियजी तुम पर प्रसन्न हुए हैं,अत: अब उनकी परिचारकी करो |" वह ब्राह्मणी पुन: सेवा करने लग गई | इस बार ब्राह्मणी बहुत श्रघा सहित परिचर्या करने लगी तो श्रीनवनीतप्रियजी उसे अनुभव जताने लगे | उस पर कृपा करने लगी तो  श्रीनवनीतप्रियजी उसे अनुभव जताने लगे | उस पर कृपा करके उससे बोलने लगे | एक दिन श्रीनवनीतप्रियजी की खीर में मेवा थोड़ी थी तो श्रीनवनीतप्रियजी ने उस ब्राह्मणी से कहा - " आज तो खीर में मेवा थोड़ी हैं |" उस ब्राह्मणी ने श्रीगुसांईजी से विनती की| श्रीगुसांईजी सुनकर बहुत प्रसन्न हुए | उन्होंने विचारा कि इस ब्राह्मणी के धन्य भाग्य है जो श्रीनवनीतप्रियजी ने इस पर ऐसी कृपा की है | वह ब्राह्मणी श्रीगुसांईजी की ऐसी कृपा पात्र थी जिसे सेवा से हटा देने पर भी उसके मन में दोष नहीं आया | उस ब्राह्मणी का चित्त सदा श्रीगुसांईजी में लगा रहा |

| जय श्री कृष्णा |



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