Monday, March 14, 2016

Shri Gusaiji Ke Sevak Bikaner Naresh Kalyan Sinhji Ke Putra Pruthvi Sinh Ki Varta

२५२ वैष्णवो की वार्ता
(वैष्णव ११७)श्रीगुसांईजी के सेवक बीकानेर नरेश कल्याण सिंहजी के पुत्र पृथ्वी सिंह की वार्ता

(प्रसंग-)
पृथ्वीसिंह बहुत अच्छे कवि थे | उन्होंने कवित - सवेया - दोहा - चौपाई - छन्द आदि अनेक प्रकार की कविताओ की रचना की | उन्होंने रुकमनी वेल और स्यामलता इत्यादि क बहुत से भाषा के काव्य ग्रन्थ बनाये | वे रात दिन श्रीठाकुरजी की सेवा करते थे | उनका चित्त श्रीठाकुरजी के चरणारविन्दो में ही रमता था | उनको संसार अधिक रूचिकर नहीं था | वे अपनी रानी को देखते थे तो उसे भी नहीं पहचान पाते थे | उनका चित्त तो सर्वदा श्रीठाकुरजी में ही रहता था | जब वे परदेश जाते थे तो मानसी सेवा करते थे | एक दिन बीकानेर के उपर शत्रुओ ने चढ़ाई ककर दी | तीन दिन तक लड़ाई हुई | दुसरे शत्रु भी दूसरी और से आगए,तो श्रीठाकुरजी ने तीन दिन तक लड़ाई की | किसी को भी मंदिर में दर्शन ण देकर राजा का कम चलाया | मंदिर के किवाड़ भीतर से बन्द हो गए किसी से भी नहीं खुले | चौथे दिन किवाड़ खुले | पृथ्वी सिंह परदेश में मानसी सेवा कर रहे थे | उन्हें वहाँ ज्ञात हो गया कि तीन दिन तक श्रीठाकुरजी ने दर्शन नहीं दिये | पृथ्वी सिंह के मन में सारा द्रश्य चित्रित हो गया उन्होंने यह बात बीकानेर लिखकर भेजी तो समस्त घटना की सत्यता की अवगति हुई | पृथ्वी सिंह ऐसे कृपा पात्र थे |
(प्रसंग-)
इसके पश्चात पृथ्वी सिंह ने वर्ज में निवास करने का निश्चय किया तथा वर्ज में ही देह छोड़ने का निश्चय कर लिया | यह बात पृथ्वी सिंह के शत्रुओं को ज्ञात हो गई | उन्होंने दिल्लीपति को सिखाया कि पृथ्वीसिंह को कही दूर भेज दिया जाये तो अधिक ठीक रहे | अत: दिल्ली पति ने पृथ्वीसिंह को काबुल की मुहिम पर भेज दिया | उन्होंने वहाँ बहुत मुल्कजीते | वहाँ पृथ्वीसिंह का काल (अन्त समय) आया | पृथ्वीसिंह ने काल से कहा - "मैं तो वर्ज में देह छोडूँगा |काल उनके सामने से गया | पृथ्वीसिंह सांडनी (ऊँटनी ) पर सवार होकर वहाँ से चले तो दो दिन में मथुरा आ गए | मार्ग में बहुत से नदी - पर्वत आए लेकिन पृथ्वी सिंह को कोई बाधा नहीं हुई | काबुल मथुराजी से छ: (: सौ) कोस है | पृथ्वी सिंह दो दिन में ही काबुल से मथुरा आ गए | यहाँ आकर उन्होंने श्रीनाथजी के दर्शन किए | यमुना जल का आचमन किया और देह त्याग दी | सो ये पृथ्वीसिंह श्रीगुसांईजी के ऐसे कृपा पात्र थे जिनको काल ने भी कोई प्रतिबंध नहीं किया |

| जय श्री कृष्णा
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