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वैष्णवों की वार्ता
(वैष्णव
६५)श्रीगुसांईजी
के सेवक प्रेमजी भाई लुवाणी
की वार्ता
हालर निवासी
प्रेमजी भाई जब ब्रजयात्रा
करने आए तो श्रीगोकुल में
श्रीगुसांईजी के सेवक बने|
ब्रजयात्रा
पूर्ण करके पुनः श्रीनाथजी
के दर्शन किए और श्रीगुसांईजी
से विनती की महाराज,
मुझे
कोई सूक्ष्म सेवा पधरा दो|"
श्रीगुसांईजी
ने कृपा करके वस्त्र सेवा पधरा
दी|
इसके
बाद प्रेमजीभाई श्रीठाकुरजी
पधरा कर अपने देश में आए|
भली
भाति सेवा करने लगे|
एक
दिन प्रेमजीभाई के मन में
विचार आया कि अन्य वैष्णवो
के यहाँ तो श्रीठाकुरजी का
स्वरूप बिरजता है,
वहाँ
तो स्वरूप होने से सेवा अंगीकार
होती होगी लेकिन अपने यहाँ
तो 'वस्त्र
सेवा'
है|
श्रीठाकुरजी
कैसे अरोगते होंगे|
इस
भाव ने बार बार चित में उद्वेग
दिया|
उत्थापन
के समय प्रेमजीभाई को वस्त्र
के तार तार में श्रीठाकुरजी
के स्वरूप के दर्शन हुए|
प्रेमजीभाई
की समझ में आ गया कि श्रीठाकुरजी
सभी एक से ही स्वरूप में बिराजते
है|
इसमें
सन्देह नहीं करना चाहिए|
प्रेमजीभाई
का सन्देह श्रीठाकुरजी ने
मिटा दिया|
प्रेमजीभाई
ऐसे कृपा पात्र थे|
।जय श्री
कृष्ण।
जय श्री कृष्णा
ReplyDeleteजय श्री कृष्णा
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