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वैष्णवों की वार्ता
(वैष्णव
७१)श्रीगुसांईजी
के सेवक भगवानदास भीतरिया की
वार्ता
भगवानदास
सांचोरा ब्राह्मण थे|
गुजरात
में श्रीगोकुल में आकर
श्रीगुसांईजी के सेवक हुए|
श्रीगुसांईजी
ने कृपा करके उन्हें श्रीनाथजी
की सेवा में रखा था|
भगवानदास,
श्रीनाथजी
की सेवा अत्यधिक प्रीति से
भलीभाँति करते थे|
शुद्ध
अन्तः करण से राजा कासा भय
श्रीनाथजी का मानते थे|
लेकिन
उनसे बालक जैसे वत्सलता भी
रखते थे|
उनके
अनुराग के कारण श्रीनाथजी भी
उनसे बहुत प्रसन्न रहते थे|
एक
दिन श्रीनाथजी,
श्रीगुसांईजी
से बाते कर रहे थे|
वही
पर भगवानदास भी उपस्थित थे|
श्रीगुसांईजी
ने भगवानदास से पूछा-"
श्रीनाथजी
ने क्या कहा?
तुम
समझे|"
भगवानदास
हाथ जोड़कर बोला-
" महाराज
, मै
तो तुच्छ जीव हूँ|
आपकी
कृपा के बिना भगवतवार्ता कैसे
समझी जा सकती है|"
यह
सुनकर श्रीगुसांईजी बहुत
प्रसन्न हुए|
इसके
बाद से श्रीनाथजी भगवानदास
भीतरिया से भी बोलने लगे|
श्रीनाथजी
सारी बातें जताने लग गए|
उन्हें
जो रुचिकर होता,
भगवानदास
से माँग लेते थे|
वह
भगवानदास भीतरिया श्रीगुसांईजी
का ऐसा कृपा पात्र सेवक था|
।जय श्री
कृष्ण।
जय श्री कृष्णा। श्याम सुन्दर श्री यमुना जी की जय।श्री वल्लभ प्रभु की जय। श्री गोसाईंजी प्रभु की जय।
ReplyDeleteजय श्री कृष्णा। श्याम सुन्दर श्री यमुना जी की जय।श्री वल्लभ प्रभु की जय। श्री गोसाईंजी प्रभु की जय।
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