२५२
वैष्णवों की वार्ता
(वैष्णव
७०)श्रीगुसांईजी
के सेवक सगुणदास की वार्ता
सगुणदास
रूप सनातन के सेवक थे|
वे
ब्रज में भ्रमण किया करते थे|
एक
बार वे श्रीगोकुल पधारे तब
श्रीगुसांईजी ठकुरानी घाट
पर विराज रहे थे|
सगुणदास
ने श्रीगुसांईजी के दर्शन
किए|
उसे
श्रीगुसांईजी के दर्शन साक्षात
पूर्ण पुरषोत्तम के रूप में
हुए|
श्रीगुसांईजी
ने उसका नाम लेकर कहा-"
सगुणदास
आगे आओ|"
सगुणदास
ने अपने मन में विचारा की मुझे
इन्होने पहले देखा भी नहीं
है,
ये
कैसे जान गए है?
ये
वास्तव में साक्षात नन्दकुमार
है,
इनकी
शरण जाऊ तो बहुत अच्छा रहे|
सगुणदास
ने प्राथना की-
" महाराज,
मुझे
शरण में ले लो|"
श्रीगुसांईजी
ने आज्ञा की-"
तुम
स्नान कर आओ|"
सगुणदास
तत्काल स्नान करके आए|
श्रीगुसांईजी
ने नाम निवेदन कराया|
उसी
समय सगुणदास को भगवतलीला की
स्फूर्ति हुए|
सगुणदास
ने श्रीमहाप्रभुजी श्रीगुसांईजी
और श्रीठाकुरजी के सहस्त्रो
पद की रचना कर कीर्तनो का गायन
किया|
यहाँ
सगुणदास के पद नहीं लिखे गए
है|
वे
श्रीठाकुरजी की जैसी सेवा का
अनुभव करते थे वैसी पद रचना
कर देते थे|
।जय श्री
कृष्ण।
जय श्री कृष्ण
ReplyDeleteजय श्री कृष्णा।श्याम सुन्दर यमुना महारानी की जय। महाप्रभु जी की जय।गोसाईंजी परम दयाल की जय।
ReplyDelete