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वैष्णवों की वार्ता
(वैष्णव
६६)श्रीगुसांईजी
के सेवक दुर्गादास की वार्ता
दुर्गादास
पूर्व देश के निवासी थे जो
तीर्थ यात्रा करते हुए ब्रज
में श्रीगोकुल में आए|
उस
समय श्रीगुसांईजी यमुनाजी
के घाट पर बिराज रहे थे|
उसे
श्रीगुसांईजी के दर्शन कोटिकन्दप
लावण्य मय पूर्ण पुरषोत्तम
के रूप में हुए|
दुर्गादास
ने श्रीगुसांईजी से विनती
की-"
महाराज
मुझे शरण में लो,
में
बहुत जन्मो से भटकर रहा हूँ|
श्रीगुसांईजी
को दया आई अतः उन्होंने कृपा
करके उसे नाम निवेदन कराया|
श्रीगुसांईजी
के सेवक होकर दुर्गादास बहुत
दिनों तक ब्रज में रहे|
श्रीगोवर्धननाथजी
के दर्शन किए|
फिर
दुर्गादास अपने देश को गए|
वहा
श्रीठाकुरजी पधराकर सेवा
करने लगे|
इनके
संग से बहुत लोग वैष्णव हुए|
श्रीठाकुरजी
दुर्गादास के साथ बालको सा
व्यवहार करते थे|
बालक
की तरह चाहे जो वस्तु मांग
लेते थे|
बालपन
की समस्त लीलाओ का अनुभव कराते
थे|
दुर्गादास
ऐसे कृपापात्र भगवदीय थे|
।जय श्री
कृष्ण।
Please Shree mahaprabhuji ke sevak Ki story bhi send kariye
ReplyDeleteJay shree krishna
ReplyDeleteJay shree krishna
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