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वैष्णवों की वार्ता
(वैष्णव
७५)श्रीगुसांईजी
के सेवक वेणी दास छीपा की वार्ता
वे वेणीदास
गुजरात में रहते थे|
जब
श्रीगुसांईजी गुजरात पधारे
तो वेणीदास ने उनके दर्शन किए|
उसे
श्रीगुसांईजी के दर्शन पूर्ण
पुरषोत्तम के रूप में हुए|
वेणीदास
उनके सेवक हुए|
श्रीगुसांईजी
से प्राथना करके श्रीठाकुरजी
पधराकर सेवा करने लगे|
थोड़े
दिन के पीछे वेणीदास ने एक
हजार रूपये का परकाला लिया,
सो
उसे बॉस की लकड़ी में भरकर
श्रीगुसांईजी के पास श्रीगोकुल
में लाए|
यहाँ
उन्होंने श्रीनवनीतप्रियजी
के दर्शन किए|
वेणीदास
श्रीगुसांईजी के साथ श्रीनाथजी
द्वार आए और उन्होंने परकाला
श्रीनाथजी को धराया|
उस
समय वेणीदास छीपा ने श्रीनाथजी
के दर्शन किए तो वह तन्मय हो
गए|
और
देहानुसंधान भूल गए|
वे
मन्दिर में मूर्च्छित होकर
गिर पड़े|
श्रीगुसांईजी
ने वेणीदास को चरण स्पर्श
कराये|
उन्होंने
चरणोदक दिया तो वेणीदास को
चेत हुआ|
वेणीदास
ने श्रीगुसांईजी से विनती
की-"
महाराज,
मुझे
ऐसे आनन्द से बाहर क्यों कर
दिया?"
श्रीगुसांईजी
ने आज्ञा की-"
अभी
तो तुमको बहुत काम करने है|"
वेणीदास
ने इसे श्रीगुसांईजी का अनुग्रह
माना|
उसने
ब्रजयात्रा की और श्रीगुसांईजी
से विदा होते समय प्राथना की
"
प्रभो,
मेरे
घर में जो श्रीठाकुरजी विराजमान
है वे श्रीनाथजी के स्वरूप
में दर्शन देते रहे,
ऐसी
कृपा करे|"
श्रीगुसांईजी
ने आज्ञा की-"
श्रीठाकुरजी
पुष्टिमार्गीय जीवो के सारे
मनोरथो को पूर्ण करते है,
तुम्हारे
भी मनोरथ पूर्ण होंगे|
वेणीदास
विदा होकर गुजरात चले गए|
घर
में श्रीठाकुरजी की सेवा करने
लगे|
घर के
श्रीठाकुरजी वेणीदास के मनोरथ
के अनुसार दर्शन देने लगे|
वेणीदास
श्रीगुसांईजी के ऐसे कृपा
पात्र भगवदीय थे|
।जय श्री
कृष्ण।
जय श्री कृष्णा। श्याम सूंदर श्री यमुना महारानी की जय। श्री महाप्रभु जी की जय। श्री गोसाईंजी परम दयाल की जय। गुरुदेव जी प्यारे की जय। सर्व वैष्णव जन की जय।
ReplyDeleteजय श्री कृष्णा। श्याम सूंदर श्री यमुना महारानी की जय। श्री महाप्रभु जी की जय। श्री गोसाईंजी परम दयाल की जय। गुरुदेव जी प्यारे की जय। सर्व वैष्णव जन की जय।
ReplyDeleteshri nathji ke darshan kiye accha laga
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