२५२ वैष्णवों की वार्ता
( वैष्णव ६७ ) श्रीगुसांईजी के सेवक भावनगर वासी ब्राह्मण की वार्ता
एक बार
श्रीगुसांईजी दक्षिण में
पधारे
तो
भावनगर
में
उस
ब्राह्मण
को
वेद
पढ़ाते
देखा |
श्रीगुसांईजी ने विचार
किया -"
यह
ब्राह्मण
बहुत
अच्छा
वेद
का
पाठ
करता
है ,
परन्तु
अर्थ
नहीं
समझता
है ,
यदि
यह
अर्थ
भी
समझे
तो
बहुत
अच्छा
रहे |
इतने
में
ही
उस
ब्राह्मण
के
मन
में
आया
कि
" मै
श्रीगुसांईजी के शरणागत
हो
जाउँ |"
वह
ब्राह्मण
श्रीगुसांईजी की शरण
में
गया |
कथा
सुनने
लगा |
श्रीगुसांईजी की कृपा
से
उस
ब्राह्मण
को
वेद
का
अर्थ
स्फुरित
होने
लगा |
वह
ब्राह्मण
श्रद्धा
सहित
वेद
का
पाठ
करने
लग
गया |
एक
दिन
श्रीनाथजी ने श्रीगुसांईजी को आज्ञा
की
-" इस
ब्राह्मण
को
हमारे
निज
मन्दिर के आगे
वेद
पाठ
कराओ |"
श्रीठाकुरजी की आज्ञा
की
अनुपालना
में
वह
ब्राह्मण
निज
मन्दिर
के
आगे
श्रृंगार
से
राजभोग
तक
वेद
पाठ
करने
लगा |
कही
अक्षर
व्
मात्रा
में
भूल
होती
तो
श्रीठाकुरजी आकर बताते
थे |
वह
ब्राह्मण
ऐसा
कृपा
पात्र
था |
।जय श्री कृष्ण।
Jay shree krishna. Shree Gosainji paramdayal ki Jay
ReplyDeleteJay shree krishna. Shree Gosainji paramdayal ki Jay
ReplyDelete