२५२
वैष्णवों की वार्ता
(वैष्णव
६८)श्रीगुसांईजी
के सेवक एक पटेल की वार्ता
वह पटेल
गुजरात में रहता था। श्रीगुसांईजी
जब गुजरात पधारे तब वह सेवक
हुआ। वह परा में रहता था।
(अर्थात
जंगल में खेतो पर मकान बनाकर
रहता था)
परा
से गाँव में नित्य भगवदवार्ता
सुनने जाया करता था। परा और
गाँव के बीच एक कोस की दूरी
थी। एक दिन एकादशी का व्रत था।
भगवन्मण्डली में जागरण हुआ,
अतः
रात को दो बजे बाद पटेल अपने
गाँव से परा के लिए चल दिया।
उसे रास्ते में एक प्रेत मिला।
प्रेत ने रास्ता रोका । पटेल
बोला-"
तू
कौन है ?
क्यों
चरित्र करता है?"
प्रेत
बोला-"
मै
प्रेत हूँ ,
तुझको
खाऊगा ?"
उस
पटेल ने कहा-"
तू खा
क्यों नहीं रहा है?"
प्रेत
बोला मै तेरे पास तक आना चाहता
हूँ लेकिन आया नहीं जाता है।"
पटेल
बोला जब तुझमे मेरे पास आने
की सामर्थ्य ही नहीं है ,
तू
कैसा प्रेत है?"
यह
सुनकर प्रेत उस पटेल पर झपटा
और उसका अंग स्पर्श करते ही
प्रेत के अंगो में अग्नि दाह
होने लगा। प्रेत पुकार ने
लगा-"
में
महा पापी ब्रह्म राक्षस था।"
उसे
पुकारते देख पटेल ने उस पर जल
छिड़का,
तब तो
पटेल में स्पष्ट बोलने की
शक्ति का संचार हुआ। उसे भगवत
स्वरूप का ज्ञान हुआ। उसने
जान लिया,
यह
कोई महा पुरुष है। प्रेत कहने
लगा-"
वैष्णव
राज में तुम्हारी शरण में हूँ
, मेरा
उद्धार करो।"
तब
पटेल ने तालाब में से जल लेकर
अष्टाक्षर मंत्र पढ़कर प्रेत
के ऊपर दूसरी बार डाल दिया।
वह तत्काल प्रेत योनि से मुक्त
हो गया। जय जयकार करते हुए
बैकुण्ठ चला गया। वह पटेल
श्रीगुसांईजी का ऐसा कृपा
पात्र था जिसके संग से प्रेत
भी भगवत पाषद होकर वैकुण्ठ
चला गया।
।जय श्री
कृष्ण।
गोसाईं जी परम दयाल की जय
ReplyDelete