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वैष्णवों की वार्ता
(वैषणव
७२)श्रीगुसांईजी
के सेवक सूरत निवासी सेवक की
वार्ता
वह वैष्णव
प्रति वर्ष ब्रजयात्रा करने
के लिए जाया करता था|
श्रीनाथजी
के दर्शन करके और व्रजयात्रा
पूर्ण करके वापस आता था|
वह
वैष्णव ब्रज की हाँडी रखता
था|
नित्य
प्रति रसोई करके धोकर कम्बल
में बांधकर वृक्ष में लटका
देता था|
एक
दिन वैष्णवो ने श्रीगुसांईजी
से कहा-"
यह
वैष्णव अनाचार फैलाता है|"
श्रीगुसांईजी
ने उस वैष्णव से पूछा|
उसने
कहा-"
ये सब
वैष्णव बाह्य दृष्टी के है|"
ब्रज
के स्वरूप को नहीं जानते है|
फिर
भी आपकी कृपा से इनको ब्रज का
स्वरूप दिखता हूँ|"
इतना
कहकर उस वैष्णव ने सभी को ब्रज
का स्वरूप दिखाया|
सभी
वैष्णवो को समस्त ब्रज स्वर्णमय
दिखाई देने लगा|
सभी
वैष्णवो को श्रीगुसांईजी ने
कहा-"
इसने
ब्रज रज के स्वरूप को जान लिया
है अतः इसको कुछ भी बाधा नहीं
है|
सामर्थ्यवान
कुछ भी कर सकता है|
लेकिन
अन्य वैष्णव ऐसा करने से बचे|
सभी
वैष्णव उसको धन्य धन्य कहने
लगे|
वह
श्रीगुसांईजी का ऐसा कृपा
पात्र था जिसने ब्रज को स्वर्णमय
दिखा दिया|
वह
ब्रज रज की बनी हाँडी को स्वर्णमय
समझकर कभी हटाते नहीं थे|
प्रतिदिन
धोकर रख देते थे|
वह
सेवक ऐसा परम भगवदीय था|
।जय श्री
कृष्ण।
जय श्री कृष्णा। श्याम सूंदर श्री यमुना महारानी की जय।महाप्रभु जी की जय।गोसाईंजी परम दयाल की जय
ReplyDeleteजय श्री कृष्णा। श्याम सूंदर श्री यमुना महारानी की जय।महाप्रभु जी की जय।गोसाईंजी परम दयाल की जय
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