२५२
वैष्णवों की वार्ता
(वैष्णव
६९)श्रीगुसांईजी
के सेवक एक ब्रजवासी की वार्ता
एक समय
श्रीगुसांईजी द्वारिका पधारे
। जामनगर में एक देवी का उपासक
बनिया जोड़ा(जूती)
बेचता
था|
उसकी
दुकान पर ब्रजवासी वैष्णव
जोड़ा खरीदने गए|
ब्रजवासी
ने जोड़ा(जूती)
तो
खरीद लिया|
जब
पैसे देने लगे तो बनिया अन्य
काम में लग गया|
उस
ब्रजवासी की बात पर ध्यान नहीं
दिया तो ब्रजवासी ने उसके एक
लात मारी और पैसे दिये|
बनिया
ने मन ही मन में कहा-"
तू मर
जाए|"
लेकिन
वह नहीं मरा|
बनिया
ने अपनी देवी से पूछा-"
मैने
उस ब्रजवासी को मरने का शाप
दिया,
वह
मरा क्यों नहीं|
मै
अन्य किसी को कहता हू वही होता
है|"
देवी
ने कहा-"
वह तो
वैष्णव है|"
वैष्णव
से तो में भी डरती हू,
इसलिए
वह नहीं मरा|
वैष्णव
से तो ब्रह्मा-रूद्र-शेष-लक्ष्मी
आदि सभी डरते है|"
उस
बनिया ने सोचा-"
मै भी
वैष्णव होऊंगा|"
वह उस
ब्रजवासी से मिला|
ब्रजवासी
से मिलकर श्रीगुसांईजी की
शरण में गया|
श्रीगुसांईजी
ने उसे नाम निवेदन कराया मार्ग
की रीति की शिक्षा दी और
श्रीठाकुरजी पधराकर सेवा करने
लगा|
वह
ब्रजवासी श्रीगुसांईजी का
ऐसा कृपापात्र था जिसका देवी
भी प्रतिबंध नहीं कर सकी|
।जय श्री
कृष्ण।
0 comments:
Post a Comment