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वैष्णवों की वार्ता
(वैष्णव
७४)श्रीगुसांईजी
के सेवक माधवदास(वडनगर
वासी)
की
वार्ता
माधवदास
बहुत बड़े पण्डित थे लेकिन वे
अन्य मार्गीय थे|
वे
वैष्णवो को टिलवा कहते थे|
एक
समय श्रीगुसांईजी बड़ नगर पधारे
थे|
वहाँ
उन्होंने पण्डितो की सभा की|
माधवदास
अपने पण्डितो को लेकर सभा में
उपस्थित हुए|
वहाँ
साकार और निराकार विषय को लेकर
पण्डितो में वाद (शास्त्राथॅ)
हुआ|
श्रीगुसांईजी
ने साकार ब्रह्म का प्रतिपादन
किया|
सभा
में बहुत विवाद हुआ|
माधवदास
के मन में "पुष्टिमार्ग
वेद निमूलक है,
यह
भाव था सो तिरोहित हो गया|
माधवदास
उसी समय श्रीगुसांईजी के सेवक
हुए|
अन्य
पण्डितो ने कहा-"
तुम
हमारे मुखिया हो,
तुम
इनके सेवक क्यों हो गए?"
माधवदास
ने कहा-"
जो
दुराग्रही होता है,
वह
तत्व को नहीं समझता है,
परन्तु
जो सारवेत्ता होता है,
वह
तत्काल तत्व को समझ जाता है|
मुझे
वेद में पुष्टिमार्ग की
श्रेष्ठता का ज्ञान हो चूका
है अतः मैने दुराग्रह छोड़ दिया
है वे सब पण्डित यह सुनकर अपने
अपने घर चले गए|
माधवदास
श्रीठाकुरजी पधरकर सेवा करने
लगे|
माधवदास
के ऊपर श्रीठाकुरजी भी जल्दी
ही प्रसन्न हो गए|
माधवदास
श्रीगुसांईजी के ऐसे कृपा
पात्र हुए जिन्होंने दुराग्रह
छोड़कर सुंदर मार्ग ग्रहण किया|
।जय श्री
कृष्ण।
जय हो कृपानाथ गोसाईंजी परम दयाल की। जय श्री कृष्णा।
ReplyDeleteजय हो कृपानाथ गोसाईंजी परम दयाल की। जय श्री कृष्णा।
ReplyDeletekisi bhi jeev ka uddhar Gusaiji ko karna hota hai, kisi bhi bahane se anugraha barsa dete hai. rajaram jay shri krishna
ReplyDeleteVery nice jay shri krishna. Jay shri Radhe
ReplyDeleteजय हो प्रभु
ReplyDeleteજય શ્રી કૃષ્ણ
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