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वैष्णवों की वार्ता
(वैष्णव
६४)श्रीगुसांईजी
के सेवक श्रीनाथजी के बीनकार
की वार्ता
ये बीनकार
श्रीनाथजी के सन्निधान में
बीन बजाते थे और जो महाप्रसाद
मिलता था उसे स्वयं पा लेते
और अधिककी मिलने पर उसे वैष्णवो
को लिवा देते थे|
संयोग
से बीनकार का विवाह निश्चय
हुआ अतः उसने सोचा परदेश में
जाकर कुछ द्रव्य लाऊ तो ठीक
रहे|
श्रीनाथजी
ने विचार किया-"
यह
बीन बहुत सुन्दर बजाता है,
यह
परदेश नहीं जाए तो ठीक रहे|"
श्रीनाथजी
ने उसकी बीन में सोने की कटोरी
रख दी|
प्रातः
काल जब बीन बजाने आया तो बीन
में से सोने की कटोरी निकली|
उस
बीनकार ने सोने की कटोरी
श्रीगुसांईजी के सम्मुख रखकर
कहा-"
यह
कटोरी मेरी बीन में से निकली
है|"
श्रीगुसांईजी
समझ गए कि श्रीनाथजी ने इसे
देने के लिए बीन में रखी होगी|
श्रीगुसांईजी
ने आज्ञा की-तुमने
परदेश जाने का विचार किया है,
सो
श्रीनाथजी की आज्ञा नहीं है|
तुम
मत जाओ,
तुम्हारा
काम जितने द्रव्य से बने,
वह
द्रव्य हमसे प्राप्त करो|"
बीनकार
ने विनती की-"
मै
देवद्रव्य और गुरु द्रव्य
नहीं लूंगा,
आपकी
कृपा से सारा कार्य सिद्ध हो
जाएगा|"
उस
बीनकार ने परदेश जाने का विचार
छोड़ दिया|
उसने
दृढ निश्चय कर लिया,
जो
होगा सो होगा|
इसी
बीच गुजरात से कुछ लोगो का
समूह आया उसमे एक वैष्णव था,
उसको
बीनकार के बारे में जानकारी
हुइ। उसने बीनकार को बुलाया,
उसका
विवाह कार्य पांच सो रुपया
खर्च करके कराया|
इससे
श्रीनाथजी बहुत प्रसन्न हुए
वे बीनकार श्रीनाथजी के कृपा
पात्र थे,
जिनके
बिना श्रीनाथजी से नहीं रहा
गया|
।जय श्री
कृष्ण।
जय श्री नाथ जी बाबा की
ReplyDeleteजय श्री नाथ जी बाबा की
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