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वैष्णवों की वार्ता
(वैष्णव
६३)श्रीगुसांईजी
के सेवक एक डोकरी की वार्ता
उस डोकरी
के माथे श्रीबालकृष्णजी
विराजते थे और वह भक्ति भाव
से सेवा करती थी|
एक
दिन उस डोकरी का काल आया और
उसे काल के साक्षात दर्शन हुए|
उस
डोकरी ने काल से कहा-"
मै तो
अभी नहीं चलूँगी|"
यह
सुनकर काल लौट गया|
इस
प्रकार उस डोकरी ने आठ बार काल
को पुनः कर दिया|
एक
दिन काल ने धर्मराजा से कहा-"
मै आठ
बार डोकरी के पास से पुनः आया
हूँ|
मै जब
भी जाता हूँ,
वह
भगवत सेवा में संलग्न मिलती
है|
मुझे
आते हुए देखकर दूर से ही हाथ
हिलाकर मना कर देती है|
उसके
शरीर में ऐसा तेज है कि मै उसके
शरीर के समीप नहीं जा सकता
हूँ|
यमराज
ने कहा-"
यह
भगवद भक्त डोकरी तेरे दण्ड
में नहीं आएगी|
यह तो
काल के माथे पर पाँव रख कर
भगवल्लीला में पहुँचेगी|
फिर
एक दिन श्रीगुसांईजी राज नगर
पधारे|
उस
डोकरी ने श्रीबालकृष्णजी को
श्रीगुसांईजी के लिए समर्पित
कर दिया|
वह
देह त्याग कर भगवल्लीला में
प्राप्त हो गई|
वह
डोकरी ऐसी भगवदीय थी जिसने
स्वेच्छा से देह त्यागी|
।जय श्री
कृष्ण।
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