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वैष्णवों की वार्ता
(वैष्णव
६१)श्रीगुसांईजी
के सेवक माँ बेटा की वार्ता
ये
दोनों माँ बेटा तीर्थ यात्रा
करने के लिए गए|
तीर्थयात्रा
करते हुए ये श्रीगोकुल में
पहुँचे|
वहाँ
इन्होने श्रीगुसांईजी के
दर्शन पूर्ण पुरषोत्तम के
रूप में किए|
इन
दोनों माता पुत्रो ने श्रीगुसांईजी
से प्राथना की -"
हमें
सेवक बना लो|"
श्रीगुसांईजी
ने इन पर कृपा करके इन्हे नाम
निवेदन कराया|
श्रीगुसांईजी
से आज्ञा लेकर ये श्रीनाथजी
के दर्शन करके श्रीगोकुल पुनः
आ गए|
वे
श्रीगुसांईजी के बिना एक दिन
भी नहीं रह सकते थे|
उस
बेटा की श्रीगुसांईजी में
अधिक आसक्ति थी अतः ये बहुत
दिनों तक श्रीगोकुल में
श्रीगुसांईजी के पास रहे|
एक
दिन श्रीगुसांईजी ने उन्हें
आज्ञा दी-"
तुम
अपने गाँव को जाओ|"
उन्हों
ने कहा-"
महाराज,
आपके
दर्शनों के बिना गाँव में कैसे
रहा जाएगा?"
श्रीगुसांईजी
ने उन्हें एक ऐसा भगवत स्वरूप
पधारया जिसमे श्रीगुसांईजी
स्वयं उस स्वरूप में दर्शन
देते थे|
उस
स्वरूप से ही वे बातें करते
थे|
वे
दोनों उस स्वरूप की श्रृंगार
व् भोजन आदि सेवा करते थे|
वे
दोनों माँ बेटा श्रीगुसांईजी
के स्वरूप की सेवा अपने घर में
जीवन पर्यन्त करते रहे|
उनकी
संसार में आसक्ति नहीं हुई|
वे
जीवन भर उस स्वरूप में आसक्त
रहे|
वे
घर में गुप्त रूप से सेवा करते
थे,
उनके
सेवा करने को कोई भी नहीं जानता
था|
वे
माँ बेटा ऐसे कृपा पात्र भगवदीय
थे|
।जय
श्री कृष्ण।
जय श्री कृष्ण
ReplyDelete|| Jai Shree Krishna ||
ReplyDeleteजय श्री कृष्णा
ReplyDeleteजय श्री कृष्णा
ReplyDeleteजय श्री कृष्णा
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