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वैष्णवों की वार्ता
(वैष्णव
६०)श्रीगुसांईजी
के सेवक आनंददास सांचोरा
ब्राह्मण की वार्ता
वे आनंददास
गुजरात में रहते थे और श्रीगुसांईजी
के कृपा पात्र थे|
आनंददास
ब्रजयात्रा करने गए|
ब्रजयात्रा
के मध्य एक गाँव में गए जहाँ
एक ही वैष्णव था जो बड़ा धनी
था|
उस
सेठ को श्रीठाकुरजी ने कहा-
" यहाँ
एक साँचोरा ब्राह्मण जिसका
नाम आनंददास है,
ब्रज
यात्रा में आया है,
मुझे
उसके हाथ का बनाया हुआ प्रसाद
बहुत रुचिकर लगता है|
उसको
बुलाकर सामग्री बनवाकर भोग
धराओ|"
सेठ
ने उस आनंददास को बुलाया और
कहा-"
तुम
अपने जीवन पर्यन्त यही रहो,
हमारे
प्रभु तुम्हारे ऊपर बहुत
प्रसन्न है अतः इनको प्रसन्न
करो|"
आनंददास
ने स्वीकृति दे दी और स्नान
करके सामग्री बनाने लगे ।
भगवान को प्रसाद धराने लगे|
अनेक
प्रकार के मनोरथ करने लगे|
एक
दिन एक ठग जाट जो उसी गाँव में
रहता था,
सब
लोग उसे ठग-
पाण्डेय
कहते थे,
प्रसाद
लेने आया|
वह ठग
पाण्डेय अपरस में रहता था|
वह
आनंददास को देखकर चिल्लाया-"
मै
इसके हाथ का बनाया प्रसाद नहीं
लूँगा और उसे देखकर बहुत क्रोधित
हुआ|
उसके
इस आचरण पर कोई कुछ भी नहीं
बोला|
आनंददास
का मन इससे बहुत उदास हो गया|
रात्रि
के समय उस ठग जाट को श्रीठाकुरजी
ने स्वप्न में कहा-"
यदि
तू आनंददास के हाथ का प्रसाद
नहीं लेगा तो बहिमुर्ख हो
जाएगा|"
प्रातः
काल प्रसाद लेने के समय वह ठग
जाट आया और आनंददास से विनंती
की-"
मेरे
अपराध को क्षमा करो|
में
तुम्हारे हाथ का बना प्रसाद
लेने के लिए आया हू|"
आनंददास
उसकी बात सुनकर बहुत प्रसन्न
हुआ और उसने उसके लिए पत्तल
रखी|
आनंददास
के मन में कोई विचार नहीं हुआ|
उसके
दोष पर कोई ध्यान नहीं दिया|
वह
आनंददास सांचोरा ब्राह्मण
ऐसा कृपा पात्र था जिसको
श्रीठाकुरजी समस्त सामग्री
बनाने की कला स्वयं सिखाते
थे|
।जय
श्री कृष्ण।
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