Monday, September 14, 2015

Shri Gusaiji Ke Sevak Ananddas Sachora Brahman Ki Varta

२५२ वैष्णवों की वार्ता
(वैष्णव ६०)श्रीगुसांईजी के सेवक आनंददास सांचोरा ब्राह्मण की वार्ता

वे आनंददास गुजरात में रहते थे और श्रीगुसांईजी के कृपा पात्र थे| आनंददास ब्रजयात्रा करने गए| ब्रजयात्रा के मध्य एक गाँव में गए जहाँ एक ही वैष्णव था जो बड़ा धनी था| उस सेठ को श्रीठाकुरजी ने कहा- " यहाँ एक साँचोरा ब्राह्मण जिसका नाम आनंददास है, ब्रज यात्रा में आया है, मुझे उसके हाथ का बनाया हुआ प्रसाद बहुत रुचिकर लगता है| उसको बुलाकर सामग्री बनवाकर भोग धराओ|" सेठ ने उस आनंददास को बुलाया और कहा-" तुम अपने जीवन पर्यन्त यही रहो, हमारे प्रभु तुम्हारे ऊपर बहुत प्रसन्न है अतः इनको प्रसन्न करो|" आनंददास ने स्वीकृति दे दी और स्नान करके सामग्री बनाने लगे । भगवान को प्रसाद धराने लगे| अनेक प्रकार के मनोरथ करने लगे| एक दिन एक ठग जाट जो उसी गाँव में रहता था, सब लोग उसे ठग- पाण्डेय कहते थे, प्रसाद लेने आया| वह ठग पाण्डेय अपरस में रहता था| वह आनंददास को देखकर चिल्लाया-" मै इसके हाथ का बनाया प्रसाद नहीं लूँगा और उसे देखकर बहुत क्रोधित हुआ| उसके इस आचरण पर कोई कुछ भी नहीं बोला| आनंददास का मन इससे बहुत उदास हो गया| रात्रि के समय उस ठग जाट को श्रीठाकुरजी ने स्वप्न में कहा-" यदि तू आनंददास के हाथ का प्रसाद नहीं लेगा तो बहिमुर्ख हो जाएगा|" प्रातः काल प्रसाद लेने के समय वह ठग जाट आया और आनंददास से विनंती की-" मेरे अपराध को क्षमा करो| में तुम्हारे हाथ का बना प्रसाद लेने के लिए आया हू|" आनंददास उसकी बात सुनकर बहुत प्रसन्न हुआ और उसने उसके लिए पत्तल रखी| आनंददास के मन में कोई विचार नहीं हुआ| उसके दोष पर कोई ध्यान नहीं दिया| वह आनंददास सांचोरा ब्राह्मण ऐसा कृपा पात्र था जिसको श्रीठाकुरजी समस्त सामग्री बनाने की कला स्वयं सिखाते थे|

।जय श्री कृष्ण।



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1 comments:

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