Monday, November 6, 2017

Shri Gusaniji ke Sevak Sathodara Gujarat Ke Vasi Ki Varta


२५२ वैष्णवों की वार्ता   
(वैष्णव - ४४ श्री गुसाँईजी के सेवक साठोदरा गुजरात के वासी की वार्ता


साठोदरा गुजरात के वासी वैष्णव जिस गाँव में रहते थे उस गांव में एक अन्य वैष्णव भी रहता था| दोनों परस्पर हिलमिल कर रहते थे | भक्ति पूर्वक भगवद सेवा करते थे| एक दिन दोनों जल बाहर कर आ रहे थे, रस्ते में एक वैश्या का घर था, जंहा वैश्या की बेटी नृत्य कर रही थी. साठोदरा वैष्णव को वैश्या की बेटी में एक दैवी जिव के दर्शन हुए अतः वह वँहा खड़ा रह गया. दूसरा वैष्णव अपने घर वापस आ गयाऔर उसने जान लिया की साठोदरा वैष्णव विषयी जिव है अतः उसका साथ नहीं करना चाहिए। उसने अपनी स्री से भी कह दिया की साठोदरा वैष्णव अपने घर नहीं आना चाहिए। यदि वह मुझे बुलाने आए तो कह देना की, मैँ घर पर नहीं हूँ। साठोदरा वैष्णव ने वैश्या के वँहा ठहराव किया और उसकी बेटी को अपने घर ले आया. रात्रि को उसे स्नान करवाया, उसका श्रृंगार किया। उसे अष्टाक्षर मंत्र सुनाया और ठाकुरजी के सन्निधान में उससे नृत्य करवाया। श्री ठाकुरजी ने उसका गण सुना तो बहुत प्रसन्न हुए. श्री ठाकुरजी की कृपा से वैश्या की बेटी इतनी साम्यर्थ हो गइ की वह तो संस्कृत बोलने लग गयी. उसका भागवत रूप में मन लग गया. उसने उस वैष्णव का बहुत अहसान माना। उस वैश्या ने ठहराव का द्रव्य भी नहीं लिया उसके मन में विचार आया क़ी ऐसे वैष्णव का सत्संग नित्य हो तो अधिक अच्छा रहे। उसने वैश्य कर्म छोड़ दिया ओर वैष्णव का सत्संग करने लगी। इधर उस दूसरे वैष्णव की स्त्री को ठाकुरजी ने कहा - "अब में तुम्हारे घर में नहीं रहूँगा। तुमने साठोदरा वैष्णव को वृथा दोष की दृष्टी से देखा है। " उस वैष्णव की स्त्री ने अपने स्वामी से कहा तो वह वैष्णव उनके पैरों में गिरपडा ओर अपने दोष का प्रायश्चित किया। अपना अपराध क्षमा करवाया। तब से लेकर वह वैष्णव , साठोदरा वैष्णव ओर वैश्य की बेटी परम वैष्णव हो गए ओर दूसरे वैष्णव की विषयी भावना का विकार दूर हो गया। इससे इनकी वार्ता का विस्तार कँहा तक किया जाये।
                                                                    | जय श्री कृष्ण|
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