Friday, November 10, 2017

Shri Gusaniji Ke Sevak Yadunath Das ki Varta


२५२ वैष्णवों की वार्ता   
(वैष्णव २३ श्री गुसाँईजी सेवक यदुनाथ दास की वार्ता

यदुनाथ दस जौनपुर में रहते थे। वहाँ एक महावत की वे आसक्त हो गए। वे आसक्त थे की उसको वे जल पिटे थे। एक दिन वह स्त्री एक प्रहार चढ़ जाने पर सो कर नहीं उठी। यदुनाथ तीन प्रहार तक उसके दरवाजे पर खड़े रहे। जब वे उठी तो उसने अपनी सविका से कहा - "बहार दरवाजे पर जा कर देख , कोई पुरुष तो नहीं खड़ा है?" उस सेविका - " दैव का मारा, बहार खड़ा है। " बोली - " वह तो बावला है , मेरे हाड़ चाम के शरीर में इतना मन लगाया है, उतना यदि श्यामसुंदर से लगाया होता, तो ऐसे बुद्धिमान मानती। " यह बात यदुनाथ ने सुन ली। उसके ह्रदय मै प्रकाश हो गया। जैसे सूर्य उदय पर अँधकार नष्ट हो जाता है वैसे ही उसके ह्रदय का अज्ञान जाता रहा। वह वहाँ से चल दिया। मई घर में पहुंचा। वहाँ पहुंचकर संकल्प लिया - "अब जैसे भी सम्भव हो श्यामसुंदर को भजना है। " संयोग से, उसी समय जौनपुर में श्रीगुसांईजी पधारे थे सभी वैष्णव श्रीगुसांईजी के दर्शन के लिए जा रहा थे। वह भी भीड़ के साथ ही चल दिया। उसने श्री गुसाँईजी के दर्शन किए। उसे कोटि कंदर्प लावण्या स्वरुप में पूर्ण पुरुषोत्तम के दर्शन हुए। उसने दंडवत करके श्रीगुसांईजी ने उसे नाम निवेदन कराया। पुष्टिमार्ग की पद्धति समजा कर श्रीठाकुरजी पहरा दिए। यदुनाथ दस श्रीठाकुरजी की सेवा में लीन रहने लग गए। यदुनाथ दस का मन भगवत सेवा में ऐसा आसक्त होगया की वह महावत की स्त्री प्रतिदिन सामने आकर कड़ी रहती लेकिन यदुनाथ उसकी तरफ झांकते भी नहीं थे। यदुनाथ ऐसे कृपा पात्र थे जिनके चित्त में प्रभु चिंतन समां गया आठ प्रभु की सेवा में लीन हो गए।
                                                            | जय श्री कृष्ण |
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