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वैष्णवों की वार्ता
(वैष्णव
८१)श्रीगुसांईजी
के सेवक परमानंद दास सोनी की
वार्ता
परमांनद
दास सोनी को श्रीमद भागवत,
चार
वेद,
पुराण
और सुबोधिनीजी कण्ठाग्र थे|
श्रीगुसांईजी
कथा बाँचते थे तो परमानन्द
सोनी नित्य प्रति कथा श्रवण
करते थे|
कथा
के हर्दभाव को समझते थे अतः
जब कोई कथा में प्रश्न करता
था तो श्रीगुसांईजी आज्ञा
करते थे कि परमानन्द दास सोनी
से पूछ लो|
श्रीगुसांईजी
की इतनी कृपा थी कि किसी के भी
प्रश्न का उत्तर परमानंददास
दे सकते थे|
एक
दिन चार पण्डित आए और वे
श्रीगुसांईजी की सेवा में
नहाये|
उन
चारो पण्डितो को परमानंददास
सोनी ने आदर पूर्वक बैठाया|
उन
पण्डितो के मध्य चर्चा हुई-"
जगत
सत्य है या असत्य है?"
पण्डितो
ने कहा-"
जगत
असत्य है|
ब्रह्म
के स्वरूप में जगत कल्पना
मात्र है-
जैसे-रस्सी
में सर्प और सीपी में रजत का
आभास कल्पना मात्र है|
ऐसे
ही ब्रह्म में जगत कल्पना
मात्र है|"
तब
परमानंददास ने पूछा-"
रस्सी
में सर्प और सीपी में रजत कल्पना
मात्र है|
परन्तु
अन्य स्थान पर सर्प और रजत को
देखे बिना कल्पना कैसे हो सकती
है?
उसी
प्रकार ब्रह्म में जगत मिथ्या
है,
तो
कल्पना करने वाले व्यक्ति से
सत्य जगत कहाँ देखा है?"
आप यह
स्पष्ट करने की कृपा करे|"
यह
सुनकर पण्डित विचार व्यग्र
हो गए तथा वे वहा से लौट गये|
परमानन्द
सोनी ऐसे विद्वान थे,
जिनको
श्रीगुसांईजी की वाणी पर अटूट
विश्वास था|
वे
परमानंददास ऐसे कृपा पात्र
थे जिनको सर्वशास्त्र हस्तामलक
के समान उपस्थित थे|
।जय श्री
कृष्ण।
श्री जी बाबा की जय। श्यामसुन्दर श्री यमुना महारानी की जै। महाप्रभु जी की जय।गोसाईं जी परम दयाल की जय।
ReplyDeleteश्री जी बाबा की जय। श्यामसुन्दर श्री यमुना महारानी की जै। महाप्रभु जी की जय।गोसाईं जी परम दयाल की जय।
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