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वैष्णवों
की
वार्ता
श्रीगुसांईजी
के सेवक पारधी की वार्ता
वह
पारधी राजा के पास से हंस हंसिनी
के जोड़ा पकड़ने का पुरस्कार
एक लाख रुपया ले गया और श्रीठाजुरजी
ने वैध बनकर हंस युगल को मुक्त
करा दिया|
पारधी
ने विचार किया कि वैष्णवधर्म
सबसे श्रेष्ठ है|
वैष्णव
का वेश धारण करने पर हंस भी
पकड़ में आ गए|
हंसो
पर श्रीठाकुरजी कृपा हुई अतः
वैष्णव होना अच्छा है|
यह
विचार करके वह श्रीगोकुल में
जाकर श्रीगुसांईजी की शरण
में गया|
श्रीगुसांईजी
ने उससे पूछा-"
तू
वैष्णव धर्म का निर्वाह कर
सकेगा?''
उसने
कहा-"
महाराज,
मैने
झूठा वैष्णव का वेशधारण किया
तो मुझे एक लाख रुपया प्राप्त
हुआ|
अब
जब वैष्णव का सच्चा वेश पहनकर
शुद्ध आचरण करूँगा तो श्रीठाकुरजी
क्या नहीं देंगे?"
यह
सुनकर श्रीगुसांईजी बहुत
प्रसन्न हुए|
उस
पारधी को शरण में लिया और
श्रीगोवर्धन नाथजी के दर्शन
कराये|
उसके
माथे भगवत सेवा भी पधराई|
वह
पारधी पुष्टिमार्ग की पद्धति
से सेवा करने लगा|
थोड़े
ही दिन पीछे श्रीठाकुरजी उस
पारधी को अनुभव जताने लग गए|
उस
पारधी ने बहुत दिन तक सेवा की|
उसके
पास जितना भी द्रव्य था,
उसने
श्रीगुसांईजी को भेट कर दिया|
वह
पारधी श्रीगुसांईजी का ऐसा
कृपा पात्र था|
।जय
श्री
कृष्ण।
श्री नाथ जी की जय। श्री यमुना महारानी की जय। महाप्रभु जी प्यारे की जय। गोसाईंजी परम दयाल की जय। गुरुदेव जी की जय। सभी वैष्णव जन की जय।
ReplyDeleteThis picture is not of shri gusainji
ReplyDeletethis is of shri popendralalji of shri gopal pith
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