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वैष्णवों की वार्ता
(वैष्णव
८२)श्रीगुसांईजी
के सेवक पर्वत सेन की वार्ता
पर्वत सेन
के मन में भाव था कि श्रीगुसांईजी,
श्रीनाथजी
के साक्षात स्वरूप है,
परन्तु
श्रीनाथजी के रूप में दर्शन
हो तो बहुत अच्छा हो|
एक
दिन बैठक में श्रीगुसांईजी
विराज रहे थे|
उन्होंने
पर्वत सेन को आज्ञा की-"
चन्दन
लगाओ|"
तब
पर्वत सेन ने श्रीगुसांईजी
को चन्दन समर्पित किया|
श्रीगुसांईजी
के रोम रोम में श्रीनाथजी के
दर्शन हुए|
इस पर
पर्वत सेन ने विचार किया-"
क्या
यह स्वप्न है?"
तब
श्रीगुसांईजी ने आज्ञा की,
पर्वसेनजी,
तुमको
क्या संदेह है?"
पर्वत
सेन ने विनती की-"
महाराज,
आपकी
कृपा से समस्त संदेह मिट गया
है|"
पर्वत
सेन के मन का संदेह मिट गया और
उसे भगवान की लीला का अनुभव
हुआ|
उन्होंने
नये पद रचकर गाए|
पर्वतसेन
श्रीगुसांईजी के ऐसे कृपा
पात्र थे|
।जय श्री
कृष्ण।
गोसाईं जी परम दयाल की जय
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