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वैष्णवों की वार्ता
(वैष्णव
८७)श्रीगुसांईजी
के सेवक वैष्णव की वार्ता
जिसने भैरव को तुच्छ माना
वह
वैषणव आगरा से दो गाड़ा सामग्री
भरकर गोपालपुर में ला रहा था|
उसके
रास्ते में भैरव का मन्दिर
आया,
उसके
पास ही उसके गाड़ा खड़े रह गए|
गाड़ा
वालो ने कहा-"
भैरव
पर दो नारियल चढ़ाओ,
तभी
गाड़ा आगे बढ़ पाएगा|
सभी
लोग इस मन्दिर पर नारियल चढ़ाते
है|
उस
वैष्णव ने भैरव के मन्दिर में
जाकर उससे कहा-"
तू
ने गाड़ा क्यों अटकाए है?
या
तो गाड़ो को चलने दे नहीं तो
गाड़ो में बैलो के स्थान पर
तुझको जोतकर ले जाऊँगा|"
भैरव
हाथ जोड़कर खड़ा हो गया और बोला-"
मुझ
में तुम्हारे गाड़ाओ को अटकाने
की कोई सामर्थ्य नहीं है|
मुझे
तो तुम्हारे दर्शनों की अभिलाषा
थी|
श्रीनाथजी
के प्रसाद की भी अभिलाषा है|
इसलिए
गाड़ा खड़े रखे है,
अन्यथा
इन गड़ाओ को अटकाने की तो तीनो
लोको में किसी की सामर्थ्य
नहीं है|"
तब
उस वैष्णव ने श्रीनाथजी का
प्रसाद गाडा में से निकालकर
भैरव को दिया|
भैरव
ने प्रसाद लिया और गाड़ा की
धुरी में बैठकर गाड़ा को एक
घण्टा में गोपालपुरा पहुँचा
दिया|
गाड़ी
के लोगो ने जाना कि भैरव को
नारियल दिया होगा अतः गाड़ा
के लोगो ने श्रीगुसांईजी से
गाड़ा रोकने की बात का निवेदन
किया|
श्रीगुसांईजी
ने वैषणव से कहा-"
यदि
तुमने भैरव को नारियल चढ़ाया
हो तो सारा गाड़ा ही छू गया है
अतः यह सामग्री हमारे काम की
नहीं है|
तब
उस वैष्णव ने श्रीगुसांईजी
को वास्तविकता से अवगत कराया|
वैष्णव
ने कहा-"
महाराज,
मैने
भैरव को नारियल नहीं दिया है,
उसने
श्रीनाथजी का प्रसाद चाहा
था,
सो
उसे दिया गया है|
मै
भैरव को गाड़ा में जोतकर लाया
हूँ,
वह
अभी बहार खड़ा है|
वह
श्रीनाथजी के मंगला के दर्शन
करके जाएगा|
यह
सुनकर श्रीगुसांईजी बहुत
प्रसन्न हुए|
समस्त
सामग्री को भण्डार में रखने
की आज्ञा प्रदान की|
वह
वैषणव श्रीगुसांईजी का ऐसा
कृपा पात्र था जिसने भैरव को
तुच्छ माना था|
।जय
श्री कृष्ण।
जय श्री कृष्णा। श्यामसुन्दर श्री यमुना महारानी की जय। महाप्रभुजी की जय। गोसाईंजी परम दयाल की जय। गुरुदेव जी प्यारे की जय।
ReplyDeleteJay three Krishna
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