Wednesday, December 16, 2015

Shri Gusaiji Ke Sevak Vaishnav Ki Varta Jisne Bhairav Ko Tuchchh Mana

२५२ वैष्णवों की वार्ता
(वैष्णव ८७)श्रीगुसांईजी के सेवक वैष्णव की वार्ता जिसने भैरव को तुच्छ माना


वह वैषणव आगरा से दो गाड़ा सामग्री भरकर गोपालपुर में ला रहा था| उसके रास्ते में भैरव का मन्दिर आया, उसके पास ही उसके गाड़ा खड़े रह गए| गाड़ा वालो ने कहा-" भैरव पर दो नारियल चढ़ाओ, तभी गाड़ा आगे बढ़ पाएगा| सभी लोग इस मन्दिर पर नारियल चढ़ाते है| उस वैष्णव ने भैरव के मन्दिर में जाकर उससे कहा-" तू ने गाड़ा क्यों अटकाए है? या तो गाड़ो को चलने दे नहीं तो गाड़ो में बैलो के स्थान पर तुझको जोतकर ले जाऊँगा|" भैरव हाथ जोड़कर खड़ा हो गया और बोला-" मुझ में तुम्हारे गाड़ाओ को अटकाने की कोई सामर्थ्य नहीं है| मुझे तो तुम्हारे दर्शनों की अभिलाषा थी| श्रीनाथजी के प्रसाद की भी अभिलाषा है| इसलिए गाड़ा खड़े रखे है, अन्यथा इन गड़ाओ को अटकाने की तो तीनो लोको में किसी की सामर्थ्य नहीं है|" तब उस वैष्णव ने श्रीनाथजी का प्रसाद गाडा में से निकालकर भैरव को दिया| भैरव ने प्रसाद लिया और गाड़ा की धुरी में बैठकर गाड़ा को एक घण्टा में गोपालपुरा पहुँचा दिया| गाड़ी के लोगो ने जाना कि भैरव को नारियल दिया होगा अतः गाड़ा के लोगो ने श्रीगुसांईजी से गाड़ा रोकने की बात का निवेदन किया| श्रीगुसांईजी ने वैषणव से कहा-" यदि तुमने भैरव को नारियल चढ़ाया हो तो सारा गाड़ा ही छू गया है अतः यह सामग्री हमारे काम की नहीं है| तब उस वैष्णव ने श्रीगुसांईजी को वास्तविकता से अवगत कराया| वैष्णव ने कहा-" महाराज, मैने भैरव को नारियल नहीं दिया है, उसने श्रीनाथजी का प्रसाद चाहा था, सो उसे दिया गया है| मै भैरव को गाड़ा में जोतकर लाया हूँ, वह अभी बहार खड़ा है| वह श्रीनाथजी के मंगला के दर्शन करके जाएगा| यह सुनकर श्रीगुसांईजी बहुत प्रसन्न हुए| समस्त सामग्री को भण्डार में रखने की आज्ञा प्रदान की| वह वैषणव श्रीगुसांईजी का ऐसा कृपा पात्र था जिसने भैरव को तुच्छ माना था|


।जय श्री कृष्ण।
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2 comments:

  1. जय श्री कृष्णा। श्यामसुन्दर श्री यमुना महारानी की जय। महाप्रभुजी की जय। गोसाईंजी परम दयाल की जय। गुरुदेव जी प्यारे की जय।

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