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वैष्णवों की वार्ता
(
वैष्णव
९१)श्रीगुसांईजी
के सेवक विरक्त वैष्णव की
वार्ता
वह
विरक्त वैष्णव चुटकी मँगाकर
निर्वाह करता था|
वह
प्रतिदिन श्रीगिरिराजजी की
परिक्रमा भी करता था। उसके
पास दो अन्य वैष्णव आकर रह गए|
वह
वैष्णव चुटकी करके लाता,
रसोई
बनाता और दोनों वैष्णवो की
भी पत्तल लगाया करता था|
एक
दिन उस विरक्त वैष्णव को श्रम
बहुत हो गया|
वह
थक गया|
उसका
श्रम श्रीनाथजी सहन नहीं कर
सके|
श्रीनाथजी
ने आकर उन दोनों वैष्णवो से
कहा-"
तुम
दोनों रसोई करो,
यह
वैष्णव चुटकी माँगकर कर लाएगा|"
तब
से वे दोनों ब्राह्मण रसोई
करने लगे|
इस
प्रकार तीनो जने हिलमिल कर
रहने लगे|
तीनो
ही साथ साथ महाप्रसाद लेते
थे|
वह
विरक्त वैषणव श्रीगुसांईजी
का ऐसा कृपा पात्र था जिसका
श्रम श्रीनाथजी सहन नहीं कर
सके|
।जय
श्री कृष्ण।
SHREE GUSAIJI PARAM DAYAL KI JAY HO .SHREE VALLABH PRABHU KI JAY HO.PARAM KRUPAL SHREE SHREEJIBAVA PYARE KI SADEV JAY HO JAY HO JAY JAY HO
ReplyDeleteJAY SHREE KRUSHNA TO ALL VAISHNAV
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