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वैष्णवों की वार्ता
(वैष्णव
८०)श्रीगुसांईजी के सेवक दो भाइयों की वार्ता
ये दोनों
भाई गुजरात के निवासी पटेल
थे,
ये
श्रीजी द्वार में रहकर श्रीनाथजी
की सेवा करते थे,
एक
दिन उन दोनों के मन में भावना
जाग्रत हुई कि हमने अपना द्रव्य
खर्च करके श्रीनाथजी को सामग्री
नहीं आरोगवाई है,
अतः
दोनों मजदूरी करने का विचार
करके चले|
एक
स्थान पर तालाब की खुदाई हो
रही थी अतः इन दोनों ने अपने
कण्ठी तिलक को छुपाकर मजदूरी
करना शुरू कर दिया|
ये
दोनों दिन भर मजदूरी करते और
रात्रि में भोजन बनाते थे|
इन
दोनों को मजदूरी करते बहुत
दिन बीते तो किसी ने इन्हे जान
लिया कि ये दोनों वैष्णव है|
इसलिए
इनकी खातिर(
मान)
होने
लगी|
इनसे
काम भी कम लिया जाने लगा|
इन्हे
अनुभव हुआ कि धर्म बेचकर पैसा
कमाना अच्छी बात नहीं है|
अतः
मजदूरी छोड़कर पुनः श्रीजी
द्वार पर आगए|
जो भी
द्रव्य लाए थे वह सब श्रीगुसांईजी
को देकर श्रीनाथजी को अड़ंगीकार
करा दिया|
उन्होंने
श्रीगुसांईजी से सब बात साफ
साफ बताई तो श्रीगुसांईजी ने
आज्ञा की-"
वैष्णव
धर्म प्रकट करके जो द्रव्य लाता है,
उस
द्रव्य को श्रीनाथजी अड़ंगीकार
नहीं करते है|"
ये
दोनों ऐसे कृपा पात्र थे,
जिन्होंने
मजदूरी तो की लेकिन वैष्णव
धर्म को प्रकट नहीं किया|
।जय श्री
कृष्ण।
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