Wednesday, November 18, 2015

Shri Gusaiji Ke Sevak Ranchhoddas Vaishnav Ki Varta

२५२ वैष्णवों की वार्ता
(वैष्णव ७७)श्रीगुसांईजी के सेवक रणछोड़दास वैष्णव की वार्ता

वे रणछोड़दास गुजरात में रहते थे| इनके पास धन बहुत था| ये भगवान और वैष्णवो की सेवा पूर्ण मनोयोग से करते थे| वैष्णवो के ऊपर अटूट श्रद्धा थी| एक ठग वैष्णव बनकर उनके घर में ठहर गया| उन्होंने उसका बहुत आदर किया| उस ठग ने रणछोड़दास के बेटे को एकान्त में मार दिया| गहना ऊतार कर गठड़ी बनाकर चल दिया| मार्ग में उसे रणछोड़ दस मिले| रणछोड़दास ने कहा- " वैष्णव बंधु, आपको प्रसाद लिये बिना नहीं जाने दूँगा, यह कहकर उसकी गठड़ी उठा ली| उसका हाथ पकड़ कर उसे लौटा लाए| उस वैष्णव को स्नान कराया| उसकी गठड़ी को अन्दर रख दिया| रणछोड़दास की स्त्री ने कहा-" छोरा प्रातः काल से ही बहार है, अभी लौटा नहीं, उसको ढूंढ लाओ|" रणछोड़ का बेटा उसके घर के पास के बगीचे में खेलता रहता था| रणछोड़दास उसे देखने के लिए बगीचे में गया| वहाँ उसे बालक नहीं मिला| एक मिटटी से बड़े ढेले को सन्देहास्पद स्थिति में पड़ा देखा तो उसे वह देखने लगा| वहाँ उसे बालक को मरा हुआ पड़ा देखा| उसने उसके कान में अष्टाक्षर मंत्र कहा और जोर से बोला-" उठ! उठ!! घर में तो वैषणव आए बैठे है, उनको जाकर जय श्रीकृष्ण कर|" यह सुनते ही बालक उठ बैठा, फिर खड़ा होकर, घर के लिए चल दिया| घर में लाकर उसने लड़के को स्नान कराया| श्रीठाकुरजी के दर्शन कराये| तब वह ठग रणछोड़दास के चरणो में गिर गया| उसने कहा- " मैने जो दुष्ट कर्म किया है, वह आपसे छुपा नहीं है| मुझे क्षमा करो| मुझे आप वास्तव में वैष्णव कर लो|" तब रणछोड़दास ने उसे खर्चा देकर श्रीगोकुल भेजा। श्रीगुसांईजी के लिए पत्र लिख दिया| वह श्रीगुसांईजी का सेवक हो गया| रणछोड़दास श्रीगुसांईजी के ऐसे कृपा पात्र थे|

।जय श्री कृष्ण।


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3 comments:

  1. I will be grateful if you could translate these wonderful stories into English, as I cannot read Hindi

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