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वैष्णवों की वार्ता
(वैष्णव
७७)श्रीगुसांईजी
के सेवक रणछोड़दास वैष्णव की
वार्ता
वे रणछोड़दास
गुजरात में रहते थे|
इनके
पास धन बहुत था|
ये
भगवान और वैष्णवो की सेवा
पूर्ण मनोयोग से करते थे|
वैष्णवो
के ऊपर अटूट श्रद्धा थी|
एक ठग
वैष्णव बनकर उनके घर में ठहर
गया|
उन्होंने
उसका बहुत आदर किया|
उस ठग
ने रणछोड़दास के बेटे को एकान्त
में मार दिया|
गहना
ऊतार कर गठड़ी बनाकर चल दिया|
मार्ग
में उसे रणछोड़ दस मिले|
रणछोड़दास
ने कहा-
" वैष्णव
बंधु,
आपको
प्रसाद लिये बिना नहीं जाने
दूँगा,
यह
कहकर उसकी गठड़ी उठा ली|
उसका
हाथ पकड़ कर उसे लौटा लाए|
उस
वैष्णव को स्नान कराया|
उसकी
गठड़ी को अन्दर रख दिया|
रणछोड़दास
की स्त्री ने कहा-"
छोरा
प्रातः काल से ही बहार है,
अभी
लौटा नहीं,
उसको
ढूंढ लाओ|"
रणछोड़
का बेटा उसके घर के पास के बगीचे
में खेलता रहता था|
रणछोड़दास
उसे देखने के लिए बगीचे में
गया|
वहाँ
उसे बालक नहीं मिला|
एक
मिटटी से बड़े ढेले को सन्देहास्पद
स्थिति में पड़ा देखा तो उसे
वह देखने लगा|
वहाँ
उसे बालक को मरा हुआ पड़ा देखा|
उसने
उसके कान में अष्टाक्षर मंत्र
कहा और जोर से बोला-"
उठ!
उठ!!
घर
में तो वैषणव आए बैठे है,
उनको
जाकर जय श्रीकृष्ण कर|"
यह
सुनते ही बालक उठ बैठा,
फिर
खड़ा होकर,
घर के
लिए चल दिया|
घर
में लाकर उसने लड़के को स्नान
कराया|
श्रीठाकुरजी
के दर्शन कराये|
तब वह
ठग रणछोड़दास के चरणो में गिर
गया|
उसने
कहा-
" मैने
जो दुष्ट कर्म किया है,
वह
आपसे छुपा नहीं है|
मुझे
क्षमा करो|
मुझे
आप वास्तव में वैष्णव कर लो|"
तब
रणछोड़दास ने उसे खर्चा देकर
श्रीगोकुल भेजा। श्रीगुसांईजी
के लिए पत्र लिख दिया|
वह
श्रीगुसांईजी का सेवक हो गया|
रणछोड़दास
श्रीगुसांईजी के ऐसे कृपा
पात्र थे|
।जय श्री
कृष्ण।
Gosainji param Dayal ki jay
ReplyDeleteGosainji param Dayal ki jay
ReplyDeleteI will be grateful if you could translate these wonderful stories into English, as I cannot read Hindi
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