Monday, November 23, 2015

Shri Gusaiji Ke Sevak Ek Shrota Vakta Dono Ki Varta

२५२ वैष्णवों की वार्ता
(वैष्णव ७८)श्रीगुसांईजी के सेवक एक श्रोता व् वक्ता दोनों की वार्ता

ये दोनों श्रोता व् वक्ता अपने देश में श्रीगोकुल गए| श्रीनवनीयप्रियजी के दर्शन किए और श्रीगुसांईजी के मुखारबिंद से कथा सुनने लगे| कथा सुनकर अहनिॅश भगवद वार्ता करते रहते थे| भगवद रस में ऐसे लीन हो जाते थे कि उन्हें पांच पांच, सात सात दिन तक देह की सुधि नहीं रहती थी| एक दिन भगवद वार्ता करते हुए दोनों की देह छूट गई| जब अग्नि संस्कार हुआ तो वैष्णव ने उस श्रोता वैष्णव के कान के हाड में छेद देखे| वैष्णवो ने श्रीगुसांईजी से प्राथना की-" महाराज, इस श्रोता वैष्णव के कान की अस्थियों में छिद्र क्यों हो गए है?" श्रीगुसांईजी ने आज्ञा की-" इस वैष्णव को भगवद वार्ता सुनने की ऐसी आतुरता थी कि इसके रोम रोम में श्रवण हो जाते| जब श्रवण की आतुरता होती है तो भगवदवार्ता सुनने की उत्कण्ठा रोम रोम में हो जाती है| भगवद वार्ता सुनने की ऐसी ही आतुरता होनी चाहिए| यह बात सुनकर वैष्णव बहुत प्रसन्न हो गए| वे श्रोता वक्ता ऐसे ही कृपापात्र थे|

।जय श्री कृष्ण।


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