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वैष्णवों की वार्ता
(वैष्णव
७८)श्रीगुसांईजी
के सेवक एक श्रोता व् वक्ता
दोनों की वार्ता
ये दोनों
श्रोता व् वक्ता अपने देश में
श्रीगोकुल गए|
श्रीनवनीयप्रियजी
के दर्शन किए और श्रीगुसांईजी
के मुखारबिंद से कथा सुनने
लगे|
कथा
सुनकर अहनिॅश भगवद वार्ता
करते रहते थे|
भगवद
रस में ऐसे लीन हो जाते थे कि
उन्हें पांच पांच,
सात
सात दिन तक देह की सुधि नहीं
रहती थी|
एक
दिन भगवद वार्ता करते हुए
दोनों की देह छूट गई|
जब
अग्नि संस्कार हुआ तो वैष्णव
ने उस श्रोता वैष्णव के कान
के हाड में छेद देखे|
वैष्णवो
ने श्रीगुसांईजी से प्राथना
की-"
महाराज,
इस
श्रोता वैष्णव के कान की
अस्थियों में छिद्र क्यों हो
गए है?"
श्रीगुसांईजी
ने आज्ञा की-"
इस
वैष्णव को भगवद वार्ता सुनने
की ऐसी आतुरता थी कि इसके रोम
रोम में श्रवण हो जाते|
जब
श्रवण की आतुरता होती है तो
भगवदवार्ता सुनने की उत्कण्ठा
रोम रोम में हो जाती है|
भगवद
वार्ता सुनने की ऐसी ही आतुरता
होनी चाहिए|
यह
बात सुनकर वैष्णव बहुत प्रसन्न
हो गए|
वे
श्रोता वक्ता ऐसे ही कृपापात्र
थे|
।जय श्री
कृष्ण।
Jay shree Krishna
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