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वैष्णवों की वार्ता
(वैष्णव
७९)श्रीगुसांईजी
के सेवक धोंधी कलावत की वार्ता
वह धोंधी
कलावत ऊँची जात में से था,
गान
विधा में बहुत कुशल था|
वह
श्रीगुसांईजी का सेवक हुआ|
श्रीगुसांईजी
ने उसे श्रीनवनीतप्रियजी का
कीर्तन करने के लिए नियुक्त
किया|
धोंधी
कलावत श्रीनवनीतप्रियजी की
सेवा में कीर्तन करते थे|
एक
दिन उसका कीर्तन सुनकर
श्रीनवनीतप्रियजी ने ताल
देना शुरू कर दिया|
श्रीगिरिधरजी
वहाँ खड़े थे|
उन्होंने
सोने का कड़ा पहन रखा था जिसकी
कीमत हजार रुपया थी|
श्रीगिरिधरजी
ने उतार कर सोने का कड़ा उस धोधी
को दे दिया|
श्रीगुसांईजी
ने यह सुना तो उन्होंने
श्रीगिरिधरजी से कहा-"
जब
श्रीनवनीतप्रियजी ने ताल दी
तो तुमने केवल कड़ा ही उतारकर
क्यों दिया?
तुम्हे
तो सम्पूर्ण आभूषण उतार कर
न्यौछावर कर देने थे|
तुम्हारी
यह लोभी प्रवृति अच्छी नहीं
है|"
श्रीगिरिधरजी
ने कहा-"
मै तो
आपश्री से डर गया था,
अतः
सम्पूर्ण न्यौछावर नहीं कर
सका|"
यह
सुनकर श्रीगुसांईजी बहुत
प्रसन्न हुए|
उन्होंने
धोंधी को आज्ञा दी की-"
प्रतिदिन
मन लगाकर कीर्तन गान किया
करो|"
वह
धोंधी प्रतिदिन नवीनपद रचकर
कीर्तन गाने लगा । वह धोंधी
श्रीगुसांईजी का ऐसा कृपापात्र
था|
।जय श्री
कृष्ण।
जय श्री कृष्णा। लाड़ले लाल की जय। श्री यमुना महारानी की जय। श्री महाप्रभु जी की जय। श्री गोसाईंजी परम दयाल की जय।
ReplyDeleteजय श्री कृष्णा। लाड़ले लाल की जय। श्री यमुना महारानी की जय। श्री महाप्रभु जी की जय। श्री गोसाईंजी परम दयाल की जय।
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