Wednesday, April 27, 2016

Shri Gusaiji Ke Sevak Ek Raja Ke Battis Lakshan

२५२ वैष्णवो की वार्ता
(वैष्णव १३४)श्रीगुसांईजी के सेवक एक राजा के बत्तीस लक्षण
राजपुत्र की वार्ता

एक राजा वृद्ध हुआ और उसका अन्तकाल आया| उसने अपने बेटा को बुलाया और कहा -" इस गाँव में श्यामदास वैष्णव रहता है, उसका सत्संग करते रहना और उसमे विश्वास रखना| इससे तेरा हमेशा कल्याण होगा| यह कह कर राजा तो भगवच्चरणाविन्द को प्राप्त हो गया| राजपुत्र ने वैष्णव श्यामदास को बुलाया और पिता के द्वारा दिये गए उपदेश के बारे में बताया| उसने कहा- " प्रभु जो भी करते है भला करते है|"एक दिन उस राजा (राजपुत्र) का हाथ कट गया । श्यामदास वैष्णव ने कहा - "प्रभु जो भी करते है भला करते हैं|" कुछ दिन बाद उस राजा की स्त्री का निधन हो गया| सभी लोग कहने लगे की यह बहुत बुरा हुआ| श्यामदास वैष्णव ने कहा -"प्रभु जो भी करते है, ठीक ही करते है|" यह सुनकर उस राजा को बहुत क्रोध आया, लेकिन क्रोध को प्रकट नहीं किया| थोड़े ही दिनों के बाद उस राजा के बीटा का निधन हो गया| गाँव भर में शोक मनाया गया| चारो और हा-हाकार मच गया| सभी लोगो ने कहा की राजा के यहाँ बहुत बुरा हुआ है| श्यामदास वैष्णव ने राजा के सन्मुख आकर कहा की-" प्रभु का मंगक विधान है| वे जो भी करते है ठीक ही करते है|" यह सुनकर राजा को बहुत गुस्सा आया| उसने सोचा -"सारे गाँव में राजकुमार के निधन पर शोक है और यह उसे भला होना मन रहा है| ऐसे व्यक्ति को जीवित रहने का क्या अधिकार है, जिसे भले बुरे का ज्ञान ही नहीं है|" यह सोचकर उसने उस वैष्णव को गुप्त रीति से मरवाने का उपक्रम किया| उसने अपने राज्य के हिंसक लोगो को बुलाया और उनसे कहा-" श्यामदास वैष्णव प्रात:काल चार बजे, अमुक कुए पर जल की गागर भरने जाता है| उसे वही मर कर चुपचाप कही गड देना| किसी को भी पता नहीं चलना चाहिए|" वे लोग राजा की आज्ञा पाकर दूसरे दिन प्रात:चार बजे कुए के पास जाकर छुप गए| संयोग से उस दिन घर से बहार निकलते ही श्यामदास को ठोकर लग गई| यह गिर पड़ा और इसका पैर टूट गया| वह कुए तक नहीं पहुँच सका| प्रात:काल उन नीच पुरुषों ने आकर राजा से कहा -"श्यामदास कुए पर जल की गागर भरने नहीं पंहुचा है अंत: उसे नहीं मर सके है|" राजा के जाँच करने पर ज्ञात हुआ की श्यामदास वैष्णव का पैर टूट गया है| राजा स्वयं श्यामदास वैष्णव के घर गया और सवेंदना व्यकत की| श्यामदास ने कहा -"प्रभु का विधान बड़ा मंगलमय है, वे जो भी करते है, भला ही करते है|" राजा ने सोचा -"यह कहना इसके अभ्यास में है,इसका कोई दोष नहीं है| यह अपने पैर टूटने को भी भला ही बता रहा है|" राजा बड़ा सन्तुष्ट हुआ और श्यामदास के यहाँ आकर सत्संग करता रहा| कुछ दिनों के बाद उस क्षेत्र के अधिकारी राजा ने, जो इस राजा से खंडणी(भेट-लगान) वसूल करता था, इस राजा को बुलाया| इस राजा ने श्यामदास से पूछा -"मुझे मालिक ने बुलाया है|"श्यामदास ने कहा-"प्रभु सब भला करेंगे, तुम चले जाओ|" यह रहा खंडणी देने बड़े राजा के यहाँ पहुँचा| वहॉ पंडितो की सभा लगी हुई थी| इस राजा को देखकर महाराज ने कहा-"यह राजा बत्तीस लक्षणों से युक्त ज्ञात होता है| इसकी जाँच करो|" राजा के पण्डितों ने उसे भली प्रकार देखा और राजा को सूचित किया की "यह राजा बतीस लक्षणों से युक्त ही था, लेकिन कुछ दिन पूर्व इसका हाथ काटने से यह विकलांग हो गया है| पत्नी के मर जाने से विधुर हो गया है और बेटे के मर जाने से निष्पुत्र हो गया है| इस प्रकार इसके तीन लक्षण
काम हो गये है| पण्डितों की बात सुनकर महाराज ने इसे मुक्त कर दिया| यह राजा अपने घर आ गया और यह जानने के लिए आतुर हो गया की बड़े राजा ने मुझे क्यों बुलाया था| इसने अपने पण्डितों को उस राजा के पण्डितों से जाँच करने के लिए भेजा| पण्डितों ने बताया की इस राजा ने क्षेत्र के अकाल को रोकने के लिए बहुत बड़ा तालाब खुदवाया है लेकिन उसमे पाँच करोड़ का खर्चा होने पर भी पाताल से पानी नहीं आया है| राजा ने पण्डितों से पानी नहीं आने का कारन पूछा तो पण्डितों ने राजा को बताया की बतीस लक्षणों से युक्त मनुष्य की बलि देने से पाताल से पानी प्राप्त हो सकता है| तुम्हे बतीस लक्षणों का मनुष्य जानकार बलि के लिए बुलाया था लेकिन कुछ दिन पहले तुम्हारे तिन लक्षण काम हो गये है अंत: तुम्हारा वध न करके तुम्हे मुक्त कर दिया है। यह सुनकर राजा को श्यामदास वैष्णव की बात का स्मरण हुआ और सोचा की हाथ कटने से,विकलांग होने से, पत्नी का निधन होने से विधुर होने और पुत्र के मरने से निष्पुत्र होने से मेरा जीवन बच गया है। प्रभु का मंगल विधान ही होता है। राजा उस खाली तालाब को देखने गया। श्यामदास वैषणव के निर्देश से उसने अष्टाक्षर मंत्र का जप करते हुए। तालाब पर सब और दृष्टी डाली तो तालाब में जल का श्रोत फुट पड़ा| देखते ही देखते समस्त तालाब पानी से लबालब भर गया| गाँव के सभी लोग समस्त पण्डित मण्डल और बड़े राजा का परिवार इस चमत्कार को देखकर बहुत प्रसन्न हुए। वे लोग वैष्णव धर्म के प्रताप को नहीं समझते थे। उस बड़े राजा ने इस राजा को अधिक पृथ्वी का स्वामी बनकर सम्मानित किया और आदर पूर्वक विदा किया| राजा अपने गाँव में आकर श्यामदास वैष्णव के चरणों में गिर गया और अपने द्वारा किये गए गुप्त अपराध को क्षमा करया। श्यामदास वैष्णव के सत्संग से श्रीठाकुरजी पधराकर सेवा करने लग गया। उस राजा के पिता का वैष्णवो के सत्संग से राजा का जीवन बच गया और वैष्णवधर्म पर श्रद्धा बढ़ गई|


| जय श्री कृष्णा |



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